पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 23.pdf/५६७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
५२९
मेरी भाषा

कैसे रह गये, सो मैं नहीं जान सकता। मैं बोलता गया, दूसरेने लिखा और किसी तीसरेने उसकी नकल की। इस भूलका कारण या तो उर्दू और संस्कृतका मेरा कच्चा चान हो सकता है या फिर नकल करनेवाला असली दोष तो मेरा ही माना जायेगा, उसके बाद मेरे साथीका। स्वामी आनन्द 'नवजीवन' को गुजरातमें प्रसारित करनेमें व्यस्त होने के कारण उसकी भाषाको नहीं सँभाल सकते। और महादेव देसाई तो जिस तरह आशिक माशूकके दोषको देखते हुए भी नहीं देखता उसी तरह मेरे दोषों को देखनेसे स्पष्ट रूपसे इन्कार करते हैं। उनका वश चले तो वे 'मुशिद' और 'अमानुष' शब्दोंके प्रयोग सही सिद्ध कर दें; और जो ज्ञानवान हैं वे तो हिमालयके शिखरपर जाकर बैठ गये हैं। इसमें पाठकके साथ अन्याय होता है, इसका विचार तो तीनों में से एक भी नहीं करता। बेचारी भाषा तो गरीब गाय है और हम चारों उसकी गर्दनपर छुरी फेरनेके लिए कटिबद्ध हैं। उपाय तो भाषा-प्रेमी पाठकोंके हाथ में है। उनको मेरी सलाह है कि वे महादेव देसाई, स्वामी आनन्द आदिको इस बातका नोटिस भेजें कि अब अगर फिर कभी 'नवजीवन' में हिमालय जैसी गम्भीर भूलें देखनेमें आयेंगी तो वे दूसरा नोटिस भेजे बिना ही पत्र लेना बन्द कर देंगे। इतना ही नहीं, अगर जरूरत जान पड़ी तो 'नवजीवन'-बहिष्कार मण्डलकी स्थापना करेंगे। यदि यह मण्डल अहिंसात्मक असहयोग करेगा तो मैं भी उसमें अपना नाम अवश्य दर्ज करवाऊँगा और अपने ही घरमें झगड़ा खड़ा करूँगा। भाषा प्रेमियोंको मेरा यह भी सुझाव है कि वे उपर्युक्त हिमालय-शिखर निवासीको खुली चिट्ठी लिखें कि वे प्रति सप्ताह 'नवजीवन' के ज्यादासे ज्यादा आधे पृष्ठका उपयोग 'नवजीवन' के पिछले अंकोंकी गुजराती-सम्बन्धी भूलोंको बताने में किया करें। इस तरह यदि 'नवजीवन' के पाठक कड़े कदम उठायेंगे तो वे भाषाकी सेवा करेंगे और 'नवजीवन' पर अपना स्वामित्व सिद्ध करेंगे।

अब टीकाकारकी टीका करनेमें दो शब्द लिखता हूँ। चूँकि हमने अंग्रेजी भाषा पढ़ी है, इसलिए हम चाहे कितना भी प्रयत्न क्यों न करें फिर भी जाने-अनजाने हम [अपने गुजराती लेखनमें] अंग्रेजी शैली और उसके मुहावरों आदिका प्रयोग कर जाते हैं। मैं अंग्रेजी भाषाका दुश्मन समझा जाता हूँ। सच तो यह है कि मेरे मनमें उस भाषा और उस भाषाको बोलनेवाले अंग्रेजोंके प्रति आदर भाव है। लेकिन दोनोंमें से एकको भी मैं प्रधान पद देने के लिए तैयार नहीं हूँ, बल्कि दोनोंके बिना काम चला लेने को तैयार हूँ। मेरा दृढ़ विश्वास है कि जिस व्यक्तिको गुजराती भाषापर पूरा अधिकार प्राप्त है वह व्यक्ति अंग्रेजीका एक भी शब्द जाने बिना गुजराती भाषा में भाषाकी सारी खूबियाँ ला सकता है। लेकिन अंग्रेजी अथवा अंग्रेजोंके प्रति कोई द्वेष न होने के कारण मैं दोनों में से सार ग्रहण कर सकता हूँ और इसलिए थोड़ा-बहुत अनुकरण अनायास ही हो जाता है। 'पृथ्वीनां आंतरडां[१] एक ऐसा ही अनायास आ गया मुहावरा है। 'पृथ्वीका उदर' बहुत मधुर शब्द-समूह है। लिखाते समय अगर वह मेरी जबानपर चढ़ा होता तो मैं इसका अवश्य प्रयोग करता, लेकिन

  1. पृथ्वीकी अँतड़ियों में।

२३–३४