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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

'पृथ्वीनां आंतरडां' को मैं त्याज्य प्रयोग नहीं मानता। 'मुँह मरोड़ना' तो है ही, लेकिन क्या उसी अर्थमें 'नाक मरोड़ना' का प्रयोग नहीं किया जा सकता? इस विषय में मुझे शंका तो है हालाँकि नाक मरोड़नेका प्रयत्न करते समय मैं नाक तो नहीं मरोड़ सका; हाँ, मुँह आसानीसे अवश्य मरोड़ दिया। इससे मेरी गुजराती आत्माको सन्तोष हुआ। लेकिन सब मुहावरोंकी क्या ऐसे परीक्षा हो सकती है? इसलिए फिलहाल तो इस शंकाको रहने देता हूँ। हम जब स्वराज्य ले चुकेंगे तब अवश्य मैं नरसिंहरावभाई[१] और उनसे निपटने की योग्यता रखनेवाले कवि खबरदारको[२] द्वन्द्वयुद्धके लिए आमन्त्रित करूँगा और 'नवजीवन' के पाठकोंके सम्मुख उनकी कलाका थोड़ा-बहुत नमूना रखनेका प्रयत्न करूँगा। फिलहाल तो हमारे पास ऐसे निर्दोष विनोद के लिए भी वक्त नहीं है। 'इनडायरेक्ट कन्स्ट्रक्शन' का प्रयोग गुजराती भाषामें वर्जित नहीं है, ऐसा मैं मानता हूँ, लेकिन यह कहकर मैं टीकाकारकी टीकाको बिलकुल धो डालना नहीं चाहता। लेकिन उपर्युक्त पत्र प्रकाशित करके मैं अपने भाषा-शास्त्री मित्रोंसे प्रार्थना करना चाहता हूँ कि जिस तरह कुछ एक मित्र मेरी नीतिकी चौकसी करते हैं उसी तरह वे मेरी भाषाकी चौकसी करें और इस तरह मुझे कृतार्थ करें।

इस अन्तिम वाक्यका प्रयोग उचित है अथवा अनुचित, इसका उत्तर पाठकोंकी ओरसे शिखर-निवासीसे मैं ही सार्वजनिकरूपसे पूछे लेता हूँ।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, २७-४-१९२४

३७३. भूल-सुधार

मुझे दाहोद ताल्लुकेसे एक पत्र मिला था। इस पत्रपर किसीने दाहोद ताल्लुकेकी कांग्रेस कमेटीके मन्त्री के नामसे हस्ताक्षर किये थे और मैंने मान लिया था कि हस्ताक्षर मन्त्रीके ही हैं। तदनुसार मैंने चैत्र सुदी २ के 'नवजीवन' में दाहोद के अन्त्यजोंके सम्बन्ध में एक टिप्पणी[३] लिखी थी। अब उस कमेटीके वास्तविक मन्त्री श्री सुखदेव लिखते हैं कि उपर्युक्त पत्र उनकी अनुपस्थितिमें मन्त्रीके नामसे किन्तु उनकी जानकारीके बिना लिखा गया था। श्री सुखदेव द्वारा प्रेषित संशोधित विवरणके अनुसार यह तो सच है कि भंगियोंको[४] ढेढोंके कुएँसे पानी भरने दिया गया। लेकिन स्थानीय बोर्ड के पक्के कुएँसे जो अन्त्यज पानी भरने गये थे उन्हें इन्स्पेक्टर महोदयने

  1. नरसिंहराव बी॰ दिवेटिया (१८५९-१९३७); गुजराती कवि और साहित्यक, बम्बईके एलफिन्स्टन कालेजके गुजरातीके प्रोफेसर।
  2. अरदेशर फरामजी 'खबरदार' (१८८१-१९५४); गुजरातीके प्रसिद्ध पारसी कवि।
  3. देखिए "अस्पृश्यता और दुरदुरानेकी मनोवृत्ति", ६-४-१९२४।
  4. भंगी और ढेढ दोनों ही अन्त्यज हैं लेकिन भंगी ढेढसे नीची जातिके माने जाते हैं, इसलिए ढेढ उनको अपने कुएँसे पानी नहीं भरने देते हैं।