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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

इन बहनोंमें से एकने 'समाज सेवा' नामक नाटक लिखा है। अन्य बहनोंने यह नाटक खेला था। नाटकमें टिकट रखा गया था। उपर्युक्त ५०० रुपये उन टिकटोंकी विक्रीसे होनेवाली आयमें से बची हुई रकम थी। उन्होंने नाटक खेलनेमें केवल ५० रुपये खर्च किये थे।

अन्य बहनें भी यदि इन बहनोंका अनुकरण करें तो?

अधिकांश बहनें पढ़ने अथवा खेलने लायक नाटक नहीं लिख सकतीं, अधिकांश खेल भी नहीं सकतीं, लेकिन सब कात तो अवश्य सकती हैं। एक बहनने मुझसे कहा कि महाराष्ट्रकी बहनें चुस्त हैं, उद्योगी हैं; गुजराती बहनें सुस्त हैं। ऐसा आरोप गुजराती बहनें किस तरह सहन कर सकतीं हैं? यद्यपि मुझे इतना तो स्वीकार करना ही चाहिए कि जितना सूत अवन्तिकाबहनने[१] अपनी महाराष्ट्रीय बहनों के वर्गसे कतवाया है उतना गुजराती बहनोंने काता प्रतीत नहीं होता। यदि हम निष्पक्ष होकर विचार करें तो अन्य अनेक बातोंमें भी महाराष्ट्रकी बहनें श्रेष्ठ सिद्ध होती हैं। तथापि मैं गुजराती ठहरा और गुजराती बहनोंके बारेमें लिख रहा हूँ, इसलिए मैं इतना निष्पक्ष कैसे हो सकता हूँ? निष्पक्ष नीतिकी पद्धतिको मैं स्वीकार करता हूँ फिर भी मैं इस अंक में गुजराती बहनोंके साथ पक्षपात करते हुए उनसे अनुरोध कर रहा हूँ कि वे अपनेको दक्षिणकी बहनोंके समान ही चुस्त और उद्योगी सिद्ध करें। लेकिन यदि वे मेरी इस दीन प्रार्थनाको नहीं सुनतीं तो मुझे उपर्युक्त महाराष्ट्रीय बनोने गुजराती बह्नोंपर जो आक्षेप किया है, उसे सच मानना पड़ेगा।

भाई-बहन दोनों ही कातें, लेकिन बहनोंका यह विशेष धर्म है। धनिक बहनोंको अपने कपड़ोंके लिए अथवा परोपकारके निमित्त कातना चाहिए, गरीब बहनोंको आजीविका के लिए अथवा अन्नपूर्ति के लिए कातना चाहिए। शहरोंमें मुख्यतः इसी तरह की कताई होगी। शहरों में रहनेवाली गरीब बहनें कातनेकी अपेक्षा मजदूरीसे अधिक कमा सकती हैं, अतः उनसे कातने के लिए कहना व्यर्थ है। उन्हें आवश्यकतासे अधिक कातने के लिए कहना हानिकारक है। इसके सिवा, कातने के पीछे जो उद्देश्य है वह भी इससे पूरा नहीं होता।

जीवदया मण्डल

मुझे एक खुली चिट्ठी प्राप्त हुई थी जिसमें बम्बईके जीवदया मण्डलके कार्योंके सम्बन्धमें आरोप लगाये गये थे। यदि वे सब सही हों तो जीवदया मण्डलने जीवदयाका नहीं बल्कि जीवहत्याका कार्य किया है, ऐसा मुझे लगा। इन आरोपोंके सम्बन्धमें कुछ भी लिखनेसे पहले मैं इस बातकी जाँच कर रहा था कि उनमें कितनी सचाई है। इसी बीच श्री छगनलाल नानावटी अन्य मित्रोंके साथ मुझसे मिलने आये। मैं तो उन्हें जीवदया मण्डलके मन्त्रीके रूपमें जानता था, इसलिए अपनी आदतके मुताबिक मैंने उनपर विनोदमें आक्षेप करना शुरू किया। उन्होंने कहा : "मैं फिलहाल मन्त्री नहीं हूँ" और मुझसे पूछा : आप जो कह रहे हैं, क्या वह बात मैं मण्डलसे

  1. अवन्तिकाबहन गोखले, महाराष्ट्रकी सक्रिय कांग्रेस कार्यकत्री।