पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 23.pdf/५७२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
५३४
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

सदस्य होऊँ तो बछड़ोंको बचाने के लिए मुझे जबतक मुसलमानोंका बहुमत प्राप्त न हो तबतक—यद्यपि मैं अपने-आपको कट्टर हिन्दू मानता हूँ, हिन्दू-धर्मके सूक्ष्मतम आदेशोंको जाननेकी और उनका सम्पूर्ण पालन करनेकी इच्छा रखता हूँ, गोमाताका पुजारी हूँ और उसकी रक्षामें सदा अपना शरीर अर्पित करनेके लिए तैयार रहता हूँ, तो भी—मैं मुसलमानोंकी रायकी उपेक्षा करके अपना मत नहीं दूँगा। मुझे गायकी रक्षा करनी है, सो मैं कोई मुसलमानोंका विरोध करके नहीं कर सकता, केवल उनके हृदयों में प्रवेश करके ही कर सकता हूँ। यदि मैं अपनी बातके पक्षमें उनका हृदय न जीत सकूँगा तो यह सिद्ध करनेके लिए मैं उनपर बलात्कार नहीं करना चाहता, मैं बछड़ों की रक्षा करनेवाले आर्थिक कानूनको भी छोड़ दूँगा।

काठियावाड़की खादी

कच्छ से एक खादीधारी दम्पती मुझसे मिलने के लिए आये। वे दोनों अपने हाथके कते सूतकी बनी खादी पहने हुए थे। कच्छसे चलकर जब उन्होंने काठियावाड़ में प्रवेश किया तब उन्हें निराशा हुई। राजकोट में और अन्य शहरोंमें वे जहाँ भी गये वहाँ उन्हें खादी के कपड़े और खादी की टोपी पहने शायद ही कोई दिखा और यह देखकर उनका हृदय से उठा। उनके अनुभव के अनुसार तो खादीका उपयोग काठियावाड़ की अपेक्षा कच्छ में कहीं अधिक हो रहा है। काठियावाड़की सुस्तीकी ऐसी ही शिकायत दूसरे स्थानोंसे भी आई है। शिकायत यह है कि 'आप काठियावाड़ी बहुत वाचाल और फितरती हो। कथनी में शूरवीर लेकिन करनीमें शिथिल हो।' यह सुनकर मेरा सिर शर्मके मारे नीचा हो गया। अब सुनता हूँ कि काठियावाड़ी तो काठियावाड़ी पट्टणी साहबको पराजित करेंगे, अपनी प्रतिज्ञा पूरी करेंगे तथा परिषद्[१] तो अवश्य होगी। कोई-कोई तो कहता है, "पट्टणी साहब हमें जेलमें परिषद् बुलाने से कैसे रोक सकते हैं?" अतीतके शूरवीर काठियों के ये शूरवीर मित्र इस तरह ओजस्वी भाषाका प्रयोग तो कर रहे हैं लेकिन मेरे जैसा दूर रह कर दृश्य देखनेवाला काठियावाड़ी यदि इन शूरवीर सत्याग्रहियोंसे पूछनेकी छूट ले सके तो उनसे यह पूछना चाहेगा : "आप सत्याग्रहकी शर्तोंको जानते हैं? आप खादी पहनते हैं? आप कातने के धर्मका श्रद्धापूर्वक पालन करते हैं? आपने अपने क्रोधको जीत लिया है? आप मन, वचन और कर्मसे सत्याग्रह के लिए आवश्यक अहिंसा-धर्मका पालन करते हैं?" यह प्रश्नावली कोई मैंने पूरी नहीं कर दी है। सत्याग्रह करना चाहिए अथवा नहीं, मैं इसका निर्णय देने नहीं बैठा हूँ। इसका निर्णय तो वल्लभभाई पटेल करेंगे। मैं तो केवल अपने चरखेकी रट लगा रहा हूँ। मेरी दृष्टिमें परिषद् बुलाने की अपेक्षा चरखेका महत्त्व कहीं अधिक है। काठियावाड़ में आजीविका न मिलनेसे अनेक काठियावाड़ी दूर देशमें जाकर बस जाते हैं। वे पेटकी खातिर काठियावाड़की प्राणवर्धक आबोहवा को त्यागकर बम्बईकी प्राणघातक हवाको पसन्द करते हैं। इस आर्थिक हिजरतको रोकने का उपाय चरखा है, यह समझते हुए भी

  1. काठियावाड़ राजनीतिक परिषद्; यह जनवरी १९२५ में भावनगर में हुई थी।