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एक सराहनीय उदाहरण

कितने काठियावाड़ी इस बातका विचार करते हैं कि काठियावाड़ में खादीका उपयोग इतना कम क्यों है? अगर विचार करते भी हैं तो किस हदतक उसपर अमल करते हैं? काठियावाड़ में खादीका प्रचार बहुत आसान चीज है। फिर भी वहाँ खादीका प्रचार कम है, इससे क्या प्रगट होता है? मैं यह नहीं कहना चाहता कि कच्छी दम्पतीने जो खबर दी है वह बिलकुल सही है। यह सम्भव है कि उनकी अवलोकन शक्ति मन्द हो अथवा वे केवल उन्हीं स्थानोंपर गये हों जहाँ खादीका पहनावा देखने में न आया हो। मैं तो कच्छी दम्पतीकी टीका केवल काठियावाड़ी कार्यकर्त्ताओंकी जानकारी के लिए प्रकाशित करके उन्हें सावधान करना चाहता हूँ और यह टीका यदि सही है तो मैं उससे उठनेवाले प्रश्नोंको उनके सम्मुख रख रहा हूँ ।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, २७–४–१९२४
 

३७५. एक सराहनीय उदाहरण

[अप्रैल १९२४ के अन्त में][१]

लगभग तीन साल पहले श्री भरुचाने श्री बेलगाँववालासे मेरा परिचय करवाते हुए कहा था : "ये बहुत धनवान व्यक्ति हैं और ये खादी-आन्दोलनके लिए शक्ति-स्तम्भ सिद्ध होंगे।" पारसियोंके प्रति मेरे अटूट विश्वाससे अबतक सब लोग वाकिफ हो चुके हैं। परन्तु उस विश्वासके बावजूद, मैंने जब श्री बेलगाँववालाकी ओर देखा तो उस प्रथम दर्शनमें मुझे श्री भरुचा द्वारा दिये गये आश्वासनकी सचाईपर सन्देह हुआ था। लेकिन मुझे अपने उस सन्देहके लिए शीघ्र ही पश्चात्ताप करना पड़ा, क्योंकि श्री बेलगाँववालाने श्री भरुचाकी भविष्यवाणीसे भी ज्यादा करके दिखाया है। उन्होंने खादी के प्रचारपर हजारों रुपये खर्च किये हैं? चरखे के सन्देशमें उन्हें गहरी श्रद्धा है और वे उसके कट्टर अनुयायी बन गये हैं? श्री बैंकर जब श्री बेलगाँववालाको जबरदस्ती अपने साथ कर्नाटक ले गये थे तब उन्हें क्या पता था कि कर्नाटक-यात्राका उनके इस पारसी मित्रपर क्या प्रभाव पड़ेगा? कुछ भी हो, वे कर्नाटकसे चरखेके प्रति इतना उत्साह लेकर लौटे हैं कि उन्होंने मुझे बताया है, वे प्रतिदिन प्रातःकाल एक पवित्र कर्त्तव्यके रूपमें चरखा कातने बैठ जाते हैं। यह सुनकर मुझे सचमुच बहुत खुशी हुई है। चरखा उन्हें आनन्द, शान्ति और साथ ही यह सन्तोष प्रदान करता है कि वे कमसे कम आधे घंटे के लिए देशके गरीब लोगोंके साथ एकात्म हो जाते हैं। ईश्वर करे कि उनके इस उदाहरणकी छूत सभी धनवान स्त्री-पुरुषोंको लगे।

मो॰ क॰ गांधी

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ ८७०२) की फोटो-नकलसे।
  1. इस लेखकी लेखन तिथिका ठीक पता नहीं चल सका। अप्रैल १९२४ की फोटो नकलोंमें इस लेखको फोटो-नकल पाई गई है। अतः अनुमानतः यह अप्रैल १९२४ में ही लिखा गया होगा।