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३७९. जेलके अनुभव—३
कुछ भयंकर परिणाम

इस अध्यायमें मैं अधिकारियोंकी इस धारणाका विवेचन करना चाहता हूँ कि उनका कर्त्तव्य कैदियोंके स्वास्थ्यकी देखभाल करने और उन्हें आपसमें लड़ने या भाग जानेसे रोकने तक ही सीमित है। मेरे खयालसे यह कहना अतिशयोक्ति नहीं है कि जेलें मवेशीखाने ही हैं जिनका प्रबन्ध अच्छा भी हो सकता है और बुरा भी। जो अधीक्षक कैदियों के लिए अच्छे भोजनकी व्यवस्था कर देता है और बिना कारण दण्ड नहीं देता वह सरकार द्वारा और कैदियों द्वारा भी आदर्श अधीक्षक माना जाता है। दोनों ही पक्ष इससे अधिककी अपेक्षा नहीं करते। यदि कोई अधीक्षक कैदियोंके प्रति किये जानेवाले व्यवहारमें वस्तुतः मानवीय भावनाको दाखिल करने लगे, तो बहुत सम्भव है कि कैदियोंको कोई गलतफहमी हो जाये और सरकार भी उसके कार्य को बुरा नहीं तो कमसे कम अव्यावहारिक मानकर उसका अविश्वास करने लगे।

अतः कारागार चारित्रिक पतनके और दुर्व्यसनोंके पनपने के अड्डे हो गये हैं। उनमें रहते हुए कैदी सुधरता नहीं है। उनमें से अधिकांश तो पहले से भी बुरे हो जाते हैं। संसारकी जनता द्वारा सर्वाधिक उपेक्षित संस्था कदाचित कारागार ही है। नतीजा यह है कि उनकी व्यवस्थापर जनताका नियन्त्रण एक तो होता ही नहीं है और यदि होता भी है तो बहुत कम। जब थोड़ी-बहुत ख्याति प्राप्त कोई राजनैतिक बन्दी कारागार में पहुँचता है तब जनता में यह जानने की उत्सुकता पैदा हो जाती है कि दीवारोंके उस पार भीतर क्या हो रहा है।

कैदियों का जो वर्गीकरण है, उसमें कैदियोंके हितकी अपेक्षा प्रशासनके हितका अधिक खयाल रखा जाता है। उदाहरणार्थ, हम देखते हैं कि पक्के अपराधी तथा ऐसे मनुष्य जिन्होंने कोई नैतिक नहीं, केवल मामूली कानून-भंगका अपराध किया है, एक ही अहाते, एक ही खण्ड, यहाँतक कि एक ही कोठरी में साथ-साथ रखे जाते हैं। भिन्न-भिन्न प्रकारके चालीस या पचास कैदी लगातार महीनों एक ही कोठरीमें बन्द किये जाते हैं—आप जरा इस स्थितिकी कल्पना तो करें। एक शिक्षित मनुष्य, जो मुहर लगे हुए टिकटका उपयोग करनेपर शासकीय दृष्टिसे स्टाम्प अधिनियम के अन्तर्गत दण्डित किया गया था, उसी ब्लॉक में रखा गया था जिसमें खतरनाक माने जानेवाले पक्के अपराधी रखे गये थे। खूनियों, अपहरणकर्त्ताओं, चोरों और मामूली कानून-भंगके अपराधियोंका एक ही जगह ठूँस दिया जाना भी रोजकी बात नहीं है। कई काम ऐसे हैं जिन्हें करने के लिए कई आदमी जरूरी होते हैं, जैसे रहट खींचना। ऐसे कामों में हट्टे-कट्टे आदमी ही लगाये जा सकते हैं। एक बार कुछ अत्यन्त भावुक व्यक्ति एक ऐसी टुकड़ीमें रख दिये गये जिस टुकड़ी के अधिकांश कैदी ऐसी अशिष्ट भाषाका व्यवहार करते रहते थे, जिसे कोई भला आदमी सुन भी नहीं सकता। जो लोग अश्लील भाषाका प्रयोग करते