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आत्म-निर्भर बनाया जा सकता है। मैं एक अलग अध्यायमें कारागारोंकी आर्थिक व्यवस्था के विवेचनकी बात सोच रहा हूँ। फिलहाल मुझे यही कहकर सन्तोष करना होगा कि नैतिक दुराचारोंका विचार करने में खर्चका प्रश्न संगत नहीं माना जा सकता।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, १–५–१९२४
 

३८०. टिप्पणियाँ
अपराधों की सूची

  1. तिलक स्वराज्य-कोष में चन्दा देना;
  2. असहयोगियोंसे सम्बन्ध रखना;
  3. असहयोगी अखबारोंका ग्राहक होना;
  4. असहयोगका पक्ष लेना;
  5. खद्दर पहनना।

मद्रास के पोस्टमास्टर जनरलने अप्रैल, १९२२ में इन बातोंको सचमुच अपराध माना और सिर्फ इन्हीं के आधारपर डाक विभागके श्री सुब्बाराव नामक एक कर्मचारीको, जो १७ सालसे नौकरी में थे, बर्खास्त कर दिया। पाठक ऐसा न समझें कि अब श्री सुब्बाराव फिर अपने पदपर बहाल कर दिये गये हैं। ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है। बेचारे बर्खास्त सरकारी नौकरने वाइसरायके पास अर्जी भेजी और ३ अक्तूबर, १९२३ को उसे यह उत्तर मिला कि परमश्रेष्ठते "आपकी अर्जी नामंजूर कर दी है।" बर्खास्तगी के हुक्मनामें में उनके अभियोग उसी रूपमें बताये गये हैं जिस रूप में मैंने उन्हें ऊपर गिनाया है। हर अभियोग के बाद उसका वर्णन किया गया है। उदाहरण के लिए तिलक स्वराज्य-कोष में चन्दा देनेके बारेमें कहा गया है कि यह चन्दा नाबालिग पुत्री के नामसे दिया गया था और चन्देकी रकम ५ रुपये थी। सरकार के मनमें कितना जहर भिद गया है इसका इससे बड़ा उदाहरण और क्या हो सकता है? ऐसी बर्खास्तगीका तर्कसंगत परिणाम तो यही होना चाहिए कि ऐसा नियम बना दिया जाये जिससे विधान मण्डलके किसी भी सदस्यका खद्दर पहनना अपराध बन जाये। फिर तो कलमकी एक लकीरसे ही सारे देशमें शान्ति स्थापित हो जायेगी। इससे सरकार भी सुखी हो जायेगी और कौंसिल प्रवेशके समर्थक और उसके विरोधी भी सुखी हो जायेंगे। लेकिन जबतक सुब्बाराव जैसे लोगोंको हरएक आदमीके विरुद्ध सच्ची शिकायत रहती है तबतक शान्ति स्थापित नहीं हो सकती। सरकार के खिलाफ उनकी शिकायत यह है कि वह नित नये अपराध गढ़ती जा रही है और कौन्सिल-प्रवेश के पक्षधरोंके खिलाफ उनकी शिकायत यह है कि वे स्वयं तो बड़े आदमी होने के कारण दण्ड-भय से मुक्त रहकर खद्दर पहन सकते हैं लेकिन श्री सुब्बाराव जैसे लोगोंको किसी तरह राहत नहीं दिला सकते। और कौन्सिल-प्रवेश के विरोधियोंके खिलाफ उनकी