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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

शिकायत यह है कि वे खद्दरको सर्वव्यापी रूप देकर स्वराज्यकी माँगको दुर्निवार क्यों नहीं बना देते।

हिंसा क्या है?

'यंग इंडिया' (१०-४-१९२४) में प्रकाशित मेरे "असहयोग हिंसाका तरीका नहीं है" शीर्षक लेखके सम्बन्ध में, एक पत्र लेखक हिंसा के उपादानोंपर विचार करते हुए कहता है :

असली सवालका सम्बन्ध उचित या अनुचित कारणोंसे नहीं है। कोई काम हिंसात्मक है या नहीं, इसका निर्णय वह काम जिन कारणोंसे किया जाता है, उनके आधारपर नहीं हो सकता, बल्कि इसका आधार यह होगा कि जिस व्यक्ति के खिलाफ वह किया गया है उसपर उसका क्या प्रभाव पड़ता है और आमतौरपर इसके क्या नतीजे निकलते हैं। हिंसात्मक और जो हिंसात्मक नहीं हैं, दोनों किस्म के कार्योंका कोई उचित कारण हो भी सकता है और नहीं भी हो सकता। अगर किसी न्याय सम्मत उद्देश्यके लिए किसी उपायको उचित माना जा सकता है तो वह उपाय अनाक्रामक ढंगका ही क्यों हो, आक्रामक ढंगका क्यों न हो? अगर उस उद्देश्यकी प्राप्तिके लिए असहयोग करना उचित हो सकता है तो तलवार उठाना भी उचित हो सकता है। नैतिकताकी वह कौनसी सूक्ष्म भावना है जो हमें असहयोगको अपनाने और तलवारको ठुकरानेकी प्रेरणा देती है? इस सवालके उत्तरमें हमसे कहा जाता है कि तलवारका प्रयोग हिंसाका तरीका है। लेकिन ऐसा क्यों? कारण सीधा-सा है कि इससे विरोधीको पीड़ा और कष्ट होता है। क्या असहयोगसे नहीं होता? क्या दोनों में कोई भेद है? एकमात्र भेद यह है कि तलवारके वारसे शरीरके अन्दर चलनेवाली उन शरीर-गत, प्राकृतिक प्रक्रियाओंमें व्यवधान पैदा हो जाता है जो जीवनको चलाती और उसकी रक्षा करती हैं और इसके फलस्वरूप शरीरको कष्ट और पीड़ा पहुँचती है, जब कि असहयोग शरीरके बाहर आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्रों में काम करनेवाली उन प्रक्रियाओंमें व्यवधान पैदा करके पीड़ा पहुँचाता है जो जीवन संरक्षणमें उतना ही योग देती हैं। जितनी कि शरीरगत प्रक्रियाएँ।

दलील काफी चतुराई-भरी है, लेकिन कसौटीपर कसने से जल्द ही इसकी असलियतका पता चल जाता है। पत्र लेखकने पीड़ा और हिंसा में कोई भेद नहीं समझा और दोनोंको समानार्थी मान लिया है। जब कोई चिकित्सक कोई कड़वी दवा देता है या कोई नस काट देता है तो उससे रोगीको पीड़ा तो होती है, लेकिन इसे हिंसा नहीं कहा जायेगा। उस पीड़ाके लिए रोगी चिकित्सकका आभार मानता है। अगर मेरा मालिक मेरे साथ दुर्व्यवहार करता है और इस कारण मैं उसकी सेवा नहीं करता तो मेरा त्यागपत्र अर्थात् उसके साथ मेरा असहयोग उसे कष्ट तो पहुँचा