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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय
समझ जायेंगे। मुझे विश्वास है कि सभी प्रमुख व्यक्ति, चाहे वे किसी जाति, धर्म अथवा राजनैतिक विचारधाराके हों, मानवीयताके इस कार्य में सर्वसामान्य लोगोंको ठीकसे समझानेमें आपका साथ देंगे।

मेरी अपील तो हिन्दुओंसे ही हो सकती है। कह नहीं सकता कि दोनों समाजों के बीच वर्तमान तनावको देखते हुए वह किस हदतक कामयाब होगी। किन्तु मुझे नतीजे की बात नहीं सोचनी है। यदि मैं श्री याकूब हसनका पत्र—जिससे मुझे सहानुभूति है—प्रकाशित न करूँ तो मैं कायरताका दोषी हूँगा। मैं जानता हूँ कि १९२१ में मलाबारमें मोपलोंने अपने हिन्दू पड़ोसियोंके साथ जैसा व्यवहार किया था, उसके कारण हिन्दू दुःखी हैं। मैं जानता हूँ कि हजारों हिन्दुओंके खयालसे उस समय सर्व-साधारण मुसलमान समाजने मोपलोंके अत्याचारोंकी जितनी तीव्र निन्दा करनी उचित थी उतनी तीव्र निन्दा नहीं की थी। मैं जानता हूँ कि श्री याकूब हसनके इस व्यापक कथनपर कि मोपलाओंने वही किया है, जो कोई भी हिन्दू, मुसलमान अथवा ईसाई, उन्हीं परिस्थितियोंमें, वैसी ही अनिवार्य संकटकी अवस्थामें आत्मरक्षा तथा आत्महित की खातिर करता, (मेरी तरह) अनेक लोगोंको आपत्ति होगी। कोई भी परिस्थिति तथा कोई भी उत्तेजना, चाहे वह कितनी ही गम्भीर रही हो, ऐसी नहीं हो सकती जिसमें बलपूर्वक धर्मपरिवर्तन करना न्याययुक्त माना जा सके। मैं आशा करता हूँ कि श्री याकूब हसन इन्हें भी मोपलोंके क्षम्य कार्यों में शामिल करना नहीं चाहते।

किन्तु मोपलों तथा शेष भारतीय मुसलमानोंके तत्कालीन अथवा बादके आचरणके विरुद्ध हिन्दुओंका जो कुछ कहना है वह साराका सारा सच हो तो भी मुझे इसमें कोई सन्देह नहीं है कि यदि हिन्दू अपने पूर्वग्रहोंके कारण अपने देशवासी पुरुषों और स्त्रियों के प्रति, भूखों मरते हुए मोपलोंके प्रति, उदारता नहीं दिखायेंगे, तो यह ईश्वर के दरबार में पाप गिना जायेगा। भावी सन्ततिके विषयमें न्याय करते समय हमें उनके पूर्वजों के कृत्योंके बारेमें नहीं सोचना चाहिए। मोपलोंने धर्म-विरुद्ध आचरण किया और उसका काफी फल भी भोग लिया। फिर हिन्दुओंको यह भी याद रखना चाहिए कि स्वयं उन्होंने भी प्रतिशोधका कोई अवसर हाथसे नहीं निकलने दिया है। बहुतोंने मौका पाते ही बदला लेने में कोई कसर नहीं रखी।

मेरी बात बहुत ही सीधी-सादी है। जिनके रहने और खानेका ठिकाना नहीं बचा उनके प्रति विरोध की सारी बात बन्द कर दी जानी चाहिए। आजसे कुछ पीढ़ियों बाद, हमारे सारे दुष्कृत्य लोगोंके खयालसे उतर जायेंगे और भावी सन्तति हमारे पारस्परिक प्रेम और सद्भावके छोटेसे-छोटे कामोंकी याद बनाये रखेगी। अतः मैं प्रत्येक हिन्दू पाठकसे, जो भूखसे ग्रस्त अपने मोपला भाइयों, बहनों तथा उनके बच्चोंके प्रति स्नेह और भाईचारेका हाथ बढ़ाना चाहता है, प्रार्थना करता हूँ कि वह अपनी सामर्थ्य के अनुसार धन मेरे पास भेजे; मैं यह प्रयत्न करूँगा कि मोपलोंमें जो सबसे ज्यादा जरूरतमन्द हैं, यह रकम उचित रीतिसे उन्हीं के बीच वितरित की जाये।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, १–५–१९२४