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३८२. वाइकोम सत्याग्रह

वाइकोम सत्याग्रहकी ओर जनताका ध्यान बहुत अधिक आकर्षित हुआ है, यद्यपि सत्याग्रह एक छोटे-से क्षेत्रमें ही हो रहा है, फिर भी उससे उत्पन्न इतनी समस्याएँ सामने खड़ी हैं कि मैं पाठकोंका ध्यान बार-बार उसकी ओर आकर्षित करने के लिए कोई कैफियत देना आवश्यक नहीं समझता।

मुझे ऐसे अनेक महत्त्वपूर्ण एवं विचारपूर्ण पत्र प्राप्त हुए हैं, जिनमें मेरे द्वारा किसी भी प्रकारसे उस सत्याग्रहको प्रोत्साहन देनेका विरोध किया गया है। एक पत्रमें तो मुझसे यहाँतक आग्रह किया गया है कि मैं अपने समूचे प्रभावका उपयोग करके उसे बिलकुल बन्द करा दूँ। खेद है कि मैं इन सब पत्रोंको प्रकाशित करनेमें असमर्थ हूँ; किन्तु मैं यहाँ इन सभी पत्रोंमें उठाये गये अथवा किसी अन्य प्रकारसे जानकारीमें लाये गये सभी प्रश्नोंपर विचार करने की कोशिश करूँगा।

सबसे पहला जो पत्र मैं ले रहा हूँ उसमें श्री जॉर्ज जोजेफ द्वारा, जो ईसाई हैं, नेता और आयोजकके रूपमें श्री मेननका स्थान लेनेके विरुद्ध आपत्ति की गई है। मेरी विनम्र रायमें यह आपत्ति पूर्णतः उचित है। ज्यों ही मैंने सुना कि श्री जोजेफ नेतृत्व करने के लिए आमन्त्रित किये गये हैं और वे नेतृत्व ग्रहण करनेकी बात सोच रहे हैं, त्यों ही ६ अप्रैलको मैंने उन्हें यह पत्र[१] लिखा था :

वाइकोम [सत्याग्रह] के सम्बन्धमें मेरा यह मत है कि इस कामको तुम हिन्दुओंपर ही छोड़ दो। आत्मशुद्धि उन्हींको करनी है। तुम इस सम्बन्धमें सहानुभूति दिखाकर और लेखादि लिखकर उनकी सहायता कर सकते हो, किन्तु तुम्हें आन्दोलनका संगठन करके उनकी सहायता नहीं करनी चाहिए और सत्याग्रह करके तो कदापि नहीं। यदि तुम नागपुर कांग्रेसके प्रस्तावको देखो तो तुम्हें पता चलेगा कि उसमें हिन्दू सदस्योंसे अस्पृश्यताके अभिशापको दूर करनेका अनुरोध किया गया है। सीरियाई ईसाइयोंमें भी इस रोगकी छूत लग गई है, श्री एन्ड्रयूजसे यह जानकर मुझे आश्चर्य हुआ।

दुर्भाग्यवश, पत्र उनतक पहुँचने के पहले ही श्री मेनन गिरफ्तार कर लिये गये थे और श्री जॉर्ज जोजेफने उनका स्थान ले लिया था। किन्तु अस्पृश्यताका समर्थन तो हिन्दू करते हैं; श्री जोजेफको उसके लिए हिन्दुओंके समान कोई प्रायश्चित्त नहीं करना है। यदि वे इस सन्दर्भ में कोई त्याग करते भी हैं तो हिन्दू-समाज मालवीयजी द्वारा किये गये प्रायश्चित्त की तरह उसे अपना प्रायश्चित्त नहीं मान सकता। अस्पृश्यता हिन्दुओंका पाप है। उसके लिए उन्हींको कष्ट भोगना चाहिए, उन्हींको अपनी शुद्धि करनी चाहिए और अपने दलित भाइयों और बहनोंका उनके ऊपर जो ऋण है, उसे स्वयं उन्हींको चुकाना चाहिए। यह घोर पाप उन्हींके लिए लज्जाकी बात है और

  1. देखिए "पत्र : जर्ज जोजेफको", ६–४–१९२४।