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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


इसलिए मेरी राय में वाइकोम सत्याग्रहका आधार उचित है, और जबतक वह उचित सीमाओं का उल्लंघन नहीं करता तथा अहिंसा और सत्यका पूर्ण आग्रह रखकर चलाया जाता है तबतक वह जनता की पूर्ण सहानुभूतिका पात्र है।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, १–५–१९२४
 

३८३. दक्षिण कर्नाटकमें चरखा

दक्षिण कर्नाटक में बाढ़ के कारण जो संकट आया उसमें स्वयंसेवकों द्वारा किये गये सहायता कार्य की चर्चा करते हुए श्री सदाशिवराव लिखते हैं :

बाढ़ सहायता समितिने, जिसका में संयुक्त मन्त्री हूँ, लगभग ५०,००० रुपया इकट्ठा किया था और इसमें से अधिकांश गरीबोंको बाँट दिया गया है। यह धन सबसे पहले तो गरीबों को भोजन और कपड़ेकी व्यवस्था करने और बादमें कुछ पैसा लोगोंको झोपड़ियाँ और छोटे-छोटे घर बनानेके लिए दिया गया। इस तरह जितना भी पैसा इकट्ठा किया गया था वह समितिने जनतासे जो वायदा किया था उसके अनुसार लगभग पूरा खर्च कर दिया गया है। लेकिन ऐन मौकेपर कांग्रेस कार्य समितिने जो ५,००० रुपयेकी रकम बाढ़ ग्रस्त क्षेत्रमें रचनात्मक कार्यक्रम में लगानेके लिए दी थी वह बाढ़की ही तरह एक छिपा हुआ वरदान सिद्ध हुई। हमारी जिला कांग्रेस कमेटीके अधीन काम करनेवाले राष्ट्रीय जिला खादी बोर्डके तत्त्वावधान में हमने बाढ़ ग्रस्त क्षेत्रोंमें बारह आदर्श उद्योगालय खोले हैं, जहाँ लोगोंको उनकी रुचिके अनुसार बुनाई और बढ़ईगोरी सिखानेकी व्यवस्था की गई है; इसके सिवा बाढ़ ग्रस्त क्षेत्रमें सभी वर्गोंके लोगोंके बीच कताईके कामको बढ़ावा देनेके लिए बहुत-कुछ किया गया है। उद्योगालय चलानेके लिए एक-एक सुविधाजनक केन्द्रस्थ गाँव चुन लिया गया है। हर सुबह हमारे कार्यकर्ता रुई और चरखा लेकर आसपासके गाँवोंमें जाते हैं और लोगोंके घरोंपर ही उन्हें कपास ओटना और कातना सिखाते हैं। इन उद्योगालयोंसे सम्बद्ध जमीनोंपर कपासके पौधोंकी पौधशालाएँ बनाई गई हैं और लोगोंके बीच उनकी अपनी जमीनपर लगानेके लिए मुफ्त या नाममात्रको दाम लेकर पौधे बँटवानेकी व्यवस्था भी की गई है। पिछले वर्ष कांग्रेस कमेटीने कपासको खेतीको प्रोत्साहन देनेका प्रयत्न किया था और यहाँकी जमीनके लिए उपयुक्त बीजोंका वितरण किया था। लेकिन कुछको छोड़कर अधिकांश लोगोंने इसके प्रति कोई उत्साह नहीं दिखाया। इसी कारण इस साल कुछ दूसरा ही प्रबन्ध किया गया है। पाँच हजार परिवार तो बड़े उत्साहसे कताईका काम अपना चुके हैं और हमें आशा है कि इस महीने एक