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दक्षिण कर्नाटक में चरखा
हजार पौंड सूत तैयार हो जायेगा। पिछले महीने हमें इन बारह उद्योगालयोंसे ७३५ पौंड सूत मिला। इसमें ८ से लेकर २० नम्बर तकका सूत था। लोग गरीब हैं, इसलिए हमें उन्हें किस्तोंपर चरखे देने पड़ते हैं। यह बात बहुत ही उत्साहवर्धक है कि जिन परिवारोंने कताईका काम शुरू किया है उनमें से अधिकांश मुसलमानों और ईसाइयोंके परिवार हैं। अब मानसून यहाँ लगभग आने ही वाला है और आशा की जाती है कि यह इस बार जल्द ही शुरू हो जायेगा; बल्कि गरज और तूफानके साथ यहाँ थोड़ी वर्षा हो भी चुकी है। यह एक सर्वविदित बात है कि वर्षा शुरू हो जानेके बाद गाँवके लोगोंके पास कोई धन्धा नहीं रह जाता। रचनात्मक कार्यक्रमके लिए अलग रखा गया पैसा अब समाप्तप्रायः है और अगर उदार लोग इस मौकेपर हमारी सहायताके लिए आगे नहीं आते तो, हमारे कर्मठ स्वयंसेवकोंने लोगोंको बेकारीके दिनोंमें उनके घरमें ही कामकी व्यवस्था करनेके लिए जो यह छोटा-सा प्रयत्न आरम्भ किया है, वह विफल हो जायेगा। इस तथ्यको ध्यान में रखते हुए कि जिन्होंने कताईका काम अपनाया है उनमें ९० प्रतिशत स्त्रियाँ ही हैं, मुझे लगता है कि राष्ट्र-निर्माणके प्रेमी लोगोंसे में विश्वासपूर्वक यह आशा कर सकता हूँ कि वे अपनी शक्ति भर अवश्य सहायता देंगे, ताकि हम गरीबोंकी सेवाका यह शानदार काम जारी रख सकें। हजारों स्त्रियाँ चरखे लेनेके लिए लालायित हैं, लेकिन पैसेके अभाव में काम आगे नहीं बढ़ सकता।
आपकी सलाहके अनुसार हमने एक और नया काम शुरू किया है। हमारे जिलेमें बीस राष्ट्रीय स्कूल हैं, जिनमें एक हजार छात्र हैं। इनमें से दो हाईस्कूल हैं। इन स्कूलोंसे निकलनेवाले लड़कोंको प्रशिक्षणार्थीके रूपमें इन उद्योगालयों में लिया जाता है; और प्रशिक्षणोपरान्त उनसे अपने-अपने गाँवोंमें जाकर प्राथमिक राष्ट्रीय शालाएँ या पंचायती अदालतें या कोई दस्तकारीका काम, जैसे बुनाई, बढ़ईगीरी, लुहारी, रंगरेजी, छपाई आदि शुरू करनेको कहा जाता है। इन उद्योगालयोंमें इन सभी धन्धोंकी शिक्षा देनेकी व्यवस्था की जा रही है। मूक गरीब भाइयोंकी ओरसे की गई हमारे कर्मठ और आत्म-त्यागी स्वयंसेवकों की यह अपील क्या अनुसुनी कर दी जायेगी?

यह एक ठोस कार्य है जिसमें सहायता अवश्य दी जानी चाहिए।

अभी कुछ ही दिन पहले मैं पचास कन्नड़ बहनोंसे मिला था।[१] उन्होंने स्वयं सारा प्रबन्ध करके एक नाटक खेला था। उन्हीं में से एकने यह नाटक लिखा भी था। इस नाटकसे ५५० रुपये आये। कुल खर्च ५० रुपये बैठा। इन बहनोंने ५०० रुपये और अपने हाथसे कता हुआ सूत मुझे लाकर दिया। मैं उनकी इस बहुमूल्य भेंटका जो उपयोग करना चाहता हूँ, मुझे मालूम है कि उसे ये बहनें पसन्द करेंगी। मुझे

  1. देखिए "टिप्पणियाँ", २७-४-१९२४।