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३८६. पत्र : जमनालाल बजाजको

अन्धेरी
शुक्रवार [२ मई, १९२४ या उसके पश्चात्]

भाई जमनालालजी,

महात्मा भगवानदीन और पं॰ सुन्दरलाल यहाँ आये हैं। असहयोग आश्रम के सम्बन्ध में और अन्य विषयोंके बारेमें बातें करना चाहते हैं। पर मैंने कह दिया है। कि आपसे मिले बिना मैं कुछ नहीं कर सकता। मैंने उन्हें आपके पास जाने की सलाह दी है। इसलिए वे वहाँ आ रहे हैं। उनकी बातें सुनकर मुझसे कुछ कहना या पूछना हो तो कहन।

मोहनदास के वन्देमातरम्

मूल गुजराती पत्र ( जी॰ एन॰ २८४६) की फोटो-नकलसे।
 

३८७. वक्तव्य : काठियावाड़ राजनीतिक परिषद् के सम्बन्धमें[१]

[बम्बई
४ मई, १९२४ के पूर्व]

मुझे मालूम हुआ है कि काठियावाड़ राजनीतिक परिषद्की स्वागत समिति राज्यको यह आश्वासन देने को तैयार है कि परिषद् पूरे तौरपर शालीनता बनाये रखेगी और राजाओंकी कोई व्यक्तिगत आलोचना नहीं की जायेगी। मुझे यह भी मालूम हुआ है कि कार्य समितिकी जो बैठक पोरबन्दरमें हुई थी उसे, भावनगर में परिषद् बुलाने के सम्बन्ध में स्वागत समितिके पास सिफारिश करनेके पूर्व, पट्टणी साहबसे सलाह-मशविरा कर लेना चाहिए था। उसने वैसा न करके गलती की है।

पट्टणी साहबकी इच्छा है कि इस साल परिषद् भावनगर में न हो। मुझे यह भी मालूम हुआ कि अगर वे यहाँ परिषद् होने देंगे तो उन्हें बहुत सारी कठिनाइयोंका सामना करना पड़ेगा। उनका कहना है कि अगर परिषद् सोनगढ़ में हो, तो वे पूरी सहायता करने को तैयार हैं। वे भावनगरके लोगोंको सोनगढ़ में परिषद्की बैठकमें शामिल होने के लिए प्रोत्साहित करने को भी तैयार हैं; और सबसे बड़ी बात तो यह

  1. परिषद् के कार्यकर्त्तओंको बम्बईमें गांधीजी और सरदार वल्लभभाई पटेलसे बातचीत हुई थी, जिसके बाद गांधीजीने यह वक्तव्य जारी किया था। यह पाठ किसी सम्वाददाता द्वारा ४ मईको भेजे गये "भावनगर-समाचार" शीर्षकसे लिया गया है।