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३९१. टिप्पणियाँ
'भैया' का अर्थ

मनुष्यकी ही भाँति शब्दको भी संगदोष लगे बिना नहीं रहता। लाला शब्द अपने मूल रूपमें मानसूचक है। पंजाबियोंके प्रति आदरभाव प्रगट करनेके लिए हम 'लाला' शब्दका प्रयोग करते हैं, लेकिन यदि किसी गुजरातीको 'सुरती लाला कहें तो वह चिढ़ उठेगा। 'बाबू' शब्द भी आदरसूचक है लेकिन अंग्रेज अपने बंगाली नौकरोंको 'बाबू' कहकर बुलाते थे, (अब भी बुलाते हैं या नहीं सो मैं नहीं जानता), इसलिए यह तिरस्कारसूचक बन गया था। ठीक यही हाल सुन्दर शब्द 'भैया' का हुआ है। 'भैया' का अर्थ 'भाई' है। इसमें जो रस है उसे तो वही व्यक्ति जान सकता है जो संयुक्त प्रान्त अथवा बिहारमें रहा हो। लेकिन हमने बम्बई में उत्तर भारतकी ओरसे जो हिन्दू नौकर आते हैं उनके लिए इस शब्दका प्रयोग किया और बादमें उत्तरकी ओरसे आनेवाले हिन्दू-मात्रको हम 'भैया' कहने लगे। फलस्वरूप उस ओरके हिन्दू 'भैया' शब्दपर आपत्ति करने लगे हैं और उस ओरके कुछ सज्जनोंने मुझे लिखा कि इसके अनेक दुष्परिणाम भी निकले हैं। 'भैया' शब्दका ऐसा उपयोग न किया जाये इसके लिए वे लोग आन्दोलन भी कर रहे हैं और यह ठीक भी है। उत्तर भारत अथवा भारतके किसी भी भागमें 'भैया' नामकी कोई जाति नहीं है। किस व्यक्तिने किस परिस्थितिमें 'भैया' शब्दका प्रयोग किया, यह हम नहीं जानते। लेकिन इतना तो हम जान सकते हैं कि यह शब्द उत्तरकी ओरसे बम्बई और आसपास के भागों में आकर बसे हुए व्यापारी आदि वर्गों को बहुत अनुचित लगता है। इसलिए हमें इस शब्दका प्रयोग करना छोड़ देना चाहिए। मुझे लिखनेवाले भाई यह भी बताते हैं कि 'नवजीवन' में भी इस शब्दका प्रयोग किया गया है। ज़बरकी कुशलता, उसकी तन्मयता और शुद्ध हृदयता आदिकी स्तुति करते हुए 'नवजीवन' में लिखनेवाले ने जबरको 'भैया' नाम से सम्बोधित किया है। आश्रम में ज़बरके प्रति हर व्यक्ति के मनमें अत्यन्त सम्मान-भाव है। तथापि मैं अब समझ गया हूँ कि हमें 'भैया' शब्दका ऐसा स्नेहपूर्वक किया गया प्रयोग भी छोड़ देना होगा।

मिलका कपड़ा

राष्ट्रीय उत्थानके इस आन्दोलनमें छद्म रूपसे ऐसा भी एक प्रयत्न हो रहा है कि मिलके कपड़े को खादीका स्थान दे दिया जाये। इससे पता चलता है कि खादीके मर्म और उसके स्थानको लोग अभी पूरी तरह समझ नहीं पाये हैं। खादी-प्रवृत्तिका जन्म मिलोंके प्रति द्वेषभावसे नहीं हुआ अपितु हिन्दुस्तान के गरीबोंके प्रति दयाभाव से इसकी उत्पत्ति हुई है। इसका नियोजन स्वराज्यके लिए किया गया है। खादीको मैं स्वराज्यका प्राण मानता हूँ। इसके बिना हिन्दुस्तान जी ही नहीं सकता