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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

बदले खादी पहनकर गरीबोंके साथ एकरूप हो जायें। ये दो विरोधी चीजें नहीं हैं। देशी मिलोंके कपड़े के लिए आज तो हिन्दुस्तानमें जगह है। मान लीजिए प्रभु कृपासे समस्त हिन्दुस्तान केवल खादीमय बन भी जाता है तो इसमें मिल मालिकोंको भय किस बातका है? उनका विदेशी व्यापार तो है ही। मान लीजिए विदेशोंके लोग भी अपनी कपड़ेकी जरूरतको स्वयं ही पूरा करने लगें; तो भी क्या? मिलोंके मालिकों में धन उपार्जन करनेकी जो क्षमता है वह कोई नष्ट होनेवाली नहीं है। देशमें हमेशा धनकी जरूरत रहेगी और इसलिए देशमें धनाढ्योंके लिए स्थान भी हमेशा रहेगा। उनका हृदय परिवर्तन हो, इतना ही पर्याप्त है। द्रव्य-लोभमें इस समय दयाका जो अंश है उस समय इसकी अपेक्षा वह अधिक होगा। आज नीति द्रव्यके अधीन है, उस समय द्रव्य नीतिके अधीन होकर रहेगा। इसमें धनवानोंका भला है और आम लोगोंका भला तो है ही।

जबतक खादीका सर्वत्र प्रचार नहीं होता तबतक ऐसा सुयोग असम्भव है और खादी के सार्वत्रिक प्रचारको सम्भव बनानेके लिए यह बात निर्विवाद रूपसे मान ली जानी चाहिए कि जो लोग खादी-प्रचारके वर्तमान आन्दोलनमें काम कर रहे हैं उनके लिए खादीके सिवा किसी अन्य वस्त्रको स्थान नहीं है। यह बात सबको दीपक-जैसी स्पष्ट दिखाई नहीं दी, इसीसे तो खादी के प्रचारकी गति धीमी है। चरखा थोड़े दिन चलता है और फिर बन्द हो जाता है; फिर चलता है और फिर बन्द हो जाता है; इसीलिए लोग कपासका संग्रह नहीं करते, इसीलिए पींजनेका शौक भी नहीं बढ़ा है, इसीलिए अनेक लोग केवल दिखावेकी खातिर ही खादी पहनते हैं और घरमें देशी अथवा विदेशी मिलके कपड़ेका उपयोग करते हैं। और जबतक यह अनिश्चितता चलती रहेगी तबतक देशी मिलोंके कपड़ेका परित्याग करनेकी बातपर जोर देने की जरूरत बनी रहेगी।

स्वर्गीय रमाबाई रानडे

रमाबाई रानडेका नाम दक्षिण में जितना प्रसिद्ध है उतना गुजरात में नहीं है। न्यायमूर्ति स्व॰ रानडेके नामको इस महिलाने शोभान्वित किया है। उनकी मृत्युसे हिन्दू जगतको भारी क्षति पहुँची है।

रमाबाईने अपना वैधव्य-जीवन जिस सुन्दर ढंगसे बिताया वैसे बहुत कम बहनोंने बिताया होगा। पूनाकी सेवासदन-जैसी दूसरी संस्था समस्त भारत में ढूँढे नहीं मिलेगी। इस सेवासदन में एक हजार स्त्रियों और लड़कियोंको अनेक प्रकारका शिक्षण मिलता है। सेवासदनको आज जो प्रतिष्ठा प्राप्त है वह रमाबाईकी अनन्य भक्तिके बिना यह संस्था कभी प्राप्त नहीं कर सकती थी। रमाबाईने एक ही कार्यके लिए अपना जीवन अर्पित कर दिया।

वैधव्यका अर्थ ही अनन्य भक्ति है। पातिव्रत्य अर्थात् शुद्ध वफादारी। सामान्य वफादारीका सम्बन्ध देहके साथ होता है इससे देहके अन्तके साथ उसका भी अन्त हो जाता है। वैधव्यकी वफादारी पतिकी आत्मा के प्रति होती है। वैधव्यको इस तरह धार्मिक महत्त्व प्रदान कर हिन्दू धर्मने यह बात सिद्ध कर दी है कि विवाहका सम्बन्ध