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टिप्पणियाँ

वस्तुतः देहके साथ नहीं, आत्माके साथ होता है। रमाबाई रानडेने आत्माका वरण किया था इसलिए आत्माके उस सम्बन्धको उन्होंने अखण्डित रखा और इसी कारण जो कार्य उनके पतिको प्रिय थे उनमें से जो काम वे स्वयं कर सकती थीं उसे उन्होंने अपने हाथ में ले लिया तथा उसकी सिद्धिके लिए अपना सर्वस्व अर्पण करके समाजके समक्ष वैधव्यका सम्पूर्ण अर्थ प्रगट किया। ऐसा करके रमाबाईने स्त्री-जातिकी भारी सेवा की है। जब मैं सैसून अस्पतालमें था तब कर्नल मैडॉकने मुझे बताया था कि अच्छी भारतीय नर्सों केवल इसी अस्पतालमें प्रशिक्षण प्राप्त करती हैं और ये सेवासदनकी मार्फत तैयार होती हैं और सारे हिन्दुस्तानसे उनकी माँग आती रहती है। विधवाएँ यदि कार्यक्षेत्रमें उतरें तो उनके लिए कार्य करनेके अनेक स्थान हैं। एक चरखेका काम ही सैकड़ों धनिक विधवाओंको सारा समय व्यस्त रख सकता है। और ऐसी कौन विधवा होगी जिसने यह अनुभव न किया हो कि चरखा गरीबोंका बेली है। यह तो मैंने एक सर्वव्यापक और परम कल्याणकारी कार्य बताया। ऐसे अनेक उपाय हैं कि जिसमें गरीब विधवाओं और अन्य बहनोंको तैयार करनेमें धनिक विधवाएँ अपना समय लगा सकती हैं।

सुपा[१] परगनेके किसान

एक सज्जन कालिआबाड़ीसे[२] निम्नलिखित पत्र[३] लिखते हैं :

यह पत्र पढ़ने और विचार करने योग्य है। इस पत्र से पता चलता है कि देशमें सोना पड़ा हुआ है। किसान अपने लाभकी बातको नहीं पहचानते। यह खेद-जनक तो है लेकिन आश्चर्यजनक नहीं। बहुत समय से चले आ रहे अपने अभ्यासके कारण किसान अपने हितका सरल अर्थशास्त्र भी नहीं समझ सकते। उन्हें अपने कपास के जितने अधिक दाम मिलते हैं उतने ही अधिक दाम उन्हें अन्तमें कपड़े के भी देने पड़ेंगे, यह तो अत्यन्त सरल गणितशास्त्र है, लेकिन यह बात वे किस तरह समझ सकते हैं? यदि शिक्षकने किसी बच्चेको गलत तरीकेसे हिसाब करना सिखाया हो तो वह बच्चा गलत उत्तर ही निकालेगा। दूसरा शिक्षक यदि उसकी भूल सुधारनेकी कोशिश करे तो बच्चा हँस पड़ेगा। वैसी ही हमारी दीन-दशा आज है। हमने गलत हिसाब करना ही सीखा है इसलिए सही गलत लगता है और गलत सही। ऐसी ही वस्तुको शंकराचार्यने माया कहा है।

स्वयंसेवकों को ऐसी स्थितिमें धीरज रखना चाहिए, इसके सिवा और कोई चारा नहीं है। किसानपर कदापि क्रोध नहीं करना चाहिए। आज उनकी जो दशा है वहीं दशा कल हमारी थी। किसान अपने स्वार्थको जरूर समझेंगे। वे घरकी आवश्यकतानुसार घरमें अनाज रखते हैं तो फिर अपनी जरूरत जितनी कपास भी क्यों न रखेंगे? स्वयं धनवान होने के कारण यदि वे कातते अथवा बुनते नहीं हैं तो भले ही

  1. गुजरातके सूरत जिलेके गाँव।
  2. गुजरातके सूरत जिलेके गाँव।
  3. पत्र यहाँ उद्धृत नहीं किया गया है। इसमें लेखकने सूपा परगनेके किसानोंकी अपने गाँव में पैदा हुईं अच्छी कपाससे सूत कातनेकी अनिच्छाका चर्चा की थी।