पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 23.pdf/६१४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
५७६
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

और शिक्षकोंने खुद तो कुछ सोचा-समझा नहीं और मेरे कहने भरसे ही वे इस आन्दोलनमें कूद पड़े। यद्यपि मैंने बहुत जोर देकर यह कहा था कि कोई भी जबतक असहयोग करना आवश्यक और उचित न समझे तबतक वैसा न करें। जिस व्यक्तिकी अन्तरात्मा स्वीकार करती है कि ब्रिटिश न्यायालयों में वकालत करना या किसी ब्रिटिश स्कूलमें शिक्षण कार्य करना गलत है उसे मैं फिरसे अपने पेशेको अपनाने के लिए कैसे कह सकता हूँ? और जिनकी अन्तरात्मा उन्हें ऐसा करनेसे रोकती नहीं है उन्हें में अपने पेशेको फिरसे अपनानेसे कैसे और क्यों रोकूँ? मैं अच्छी तरह जानता हूँ कि वकालत करते हुए भी बहुतसे वकील काफी उपयोगी सार्वजनिक कार्य कर रहे थे। जो काम हमें अब करने की जरूरत है, वह मेरे विचारसे, अबतक हम जो कुछ कर रहे हैं उससे बहुत ऊँचा है और उसके लिए अधिक त्यागकी आवश्यकता है। किसी छोटे स्थानका कोई वकील, जो वकालत करके भी सिर्फ अपने जीवन-यापनभरको ही कमा रहा हो, अगर अच्छा बुनकर बन जाये तो अब भी वह उतना कमा सकता है और साथ ही सार्वजनिक कार्य भी कर सकता है। मैं जो कुछ कहना चाहता हूँ, पता नहीं, वह अब भी आपके सामने साफ हुआ या नहीं।

हृदयसे आपका,
मो॰ क॰ गांधी

श्रीमान् कमर अहमद

दैनिक 'खिलाफत'
जैकब सर्किल

बम्बई, पोस्ट नं॰ ११
अंग्रेजी पत्र (एस॰ एन॰ ८७८६) की फोटो-नकल तथा जी॰ एन॰ ५११० से।