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४००. पत्र : के॰ माधवन् नायरको

पोस्ट अन्धेरी
६ मई, १९२४

प्रिय माघवन् नायर,

आपका पत्र[१] मिला; साथमें वह कागज भी जिसमें आपने वाइकोम संघर्षके बारेमें अपने विचार दिये हैं। किसी भी ईमानदाराना मतभेदपर नाराज होनेका सवाल ही नहीं उठता। एक ऐसी स्थितिमें जब कि सब ओरसे लोग आँख मूँदकर सहमति व्यक्त कर रहे हैं, आपका यह मतभेद मुझे सूर्यकी किरण जैसा लगा। इसके लिए आपको बधाई देता हूँ और मैं आपसे कहूँगा कि जबतक आपको दूसरे पक्षकी बात सचमुच ठीक न लगे तबतक आप अपने इसी विचारपर दृढ़ रहें।

अब आपके उक्त लेखके बारेमें। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि आपने 'सोशल रिफॉर्मर' के जिस अंककी चर्चा की है, उसे मैंने अबतक पढ़ा नहीं है। श्री नटराजन् की चीजें पढ़ने में मुझे बराबर आनन्द आता है। मैंने अपनी फाइलमें वह अंक रख भी छोड़ा है लेकिन अभीतक पढ़ नहीं पाया हूँ। मेरा दुर्भाग्य है कि मैं जब सबसे अधिक सम्पादन कार्य कर रहा होता हूँ तब अखबार कमसे कम पढ़ता हूँ। अब इसके गुण-दोषपर विचार करें। क्या आपको मालूम है कि जब केशव मेननने यह आन्दोलन शुरू किया तब उन्होंने मुझे बताया था कि सामान्य हिन्दू जनता इसके साथ है? बादमें मुझे अन्य कार्यकर्त्ताओंके जो पत्र मिले उनसे भी मेरे मनपर यही छाप पड़ी। सत्याग्रह वह करता है जिसको लगता है कि सत्यको पैरों तले रौंदा जा रहा है। गलत चीजके खिलाफ अपनी लड़ाई वह सिर्फ ईश्वरके भरोसे छेड़ता है। वह किसी भी दूसरी सहायताका मुँह नहीं जोहता। उचित समय आनेपर सहायता अपने-आप मिल जाती है और अगर उचित होती है तो सत्याग्रही उसे स्वीकार कर लेता है। सत्याग्रही भूखा रहकर और इससे बुरी स्थिति झेलकर भी अकेले लड़ने के लिए वचनबद्ध होता है। मेरा लेख[२] कृपया फिर पढ़ें, तब शायद आप मेरा आशय जितना अब समझ पाये हैं, उससे कहीं अधिक समझ जायेंगे। सत्याग्रहमें 'जो हो गया, सो हो गया' जैसी कोई चीज नहीं होती। अगर आपको लगे कि किसी

  1. १ मई, १९२४ के यंग इंडिया में वाइकोम सत्याग्रहके सम्बन्धमें गांधीजीका एक लेख प्रकाशित हुआ था, जिसपर अपने विचार व्यक्त करते हुए माधवन् नाथरने उन्हें २ मईंको एक लम्बी टिप्पणी भेजी थी। इस टिप्पणीके साथ भेजे गये पत्रमें उन्होंने लिखा था : "आशा है आप अपनी सहज उदारतावश इस मत-भेदके लिए क्षमा करेंगे। मेरा हार्दिक निवेदन है कि आप वाइकोम सत्याग्रहपर अधिक ध्यान दें और हमें सलाह दें कि यह संघर्ष किस ढंगसे चलाया जाये।" श्री नायरने अपनी टिप्पणीकी प्रतियाँ मद्राससे प्रकाशित हिन्दू और स्वराज्यको भी भेजी थीं।
  2. देखिए 'वाइकोम सत्याग्रह', पृष्ठ ५४७–५२।

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