पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 23.pdf/६१७

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४०१. पत्र : वालजी गोविन्दजी देसाईको

अन्धेरी
मंगलवार [६ मई, १९२४][१]

भाईश्री वालजी,

तुम्हारा पत्र मिला। मैं उनको लिख रहा हूँ कि वे प्रूफ तुम्हें भेजें।[२] मैं उन्हें यह भी लिख रहा हूँ कि हिज्जे जैसे हैं वैसे ही रखें। मेरे पास नीली पेंसिल नहीं रहती। यदि प्रत्येक विद्वान् अपने ही हिज्जोंका आग्रह करे तो गाँवोंके लोग क्या करेंगे? तुम्हारे किये हुए हिज्जे ही ठीक हैं; इसका कारण लिखो।

अपने भाईका नाम और पता भेजो। मैं उनसे पत्र व्यवहार करना चाहता हूँ। यदि तुम्हारे पास कपड़ा काफी न हो तो नया कपड़ा न खरीदनेकी प्रतिज्ञा तुमने नहीं की है। मैंने ऐसे लोग देखे हैं जो पास पेड़की छाया होनेपर भी धूपमें तपते रहते हैं। क्या तुम भी ऐसे ही लोगों में मे हो?

मोहनदासके वन्देमातरम्

[पुनश्चः]

तुम अपनी शक्ति से अधिक एक भी काम हाथमें लो, मैं यह भी नहीं चाहता। मुझसे जब कोई पूछता है तो मैं उसे योग्य व्यक्तियोंके नाम बता देता हूँ। बस मेरा उत्तरदायित्व इतना ही है।

गांधीजी के स्वाक्षरों में मूल गुजराती पत्र (सी॰ डब्ल्यू॰ ६००१) से।
सौजन्य : वालजी गोविन्दजी देसाई
 

४०२. पत्र : स्वामी आनन्दानन्दको

मंगलवार [६ मई, १९२४][३]

भाईश्री आनन्दानन्द,

यह है वालजीका मंगलाचरण। वे प्रूफ भी कायम रखना चाहते हैं। 'दुधारू गायकी' अनुसार हमें उनकी सब शर्तें माननी हैं। देखना चाहते हैं। वे अपने ही हिज्जे लात भी प्यारी होती है, इस उक्तिके उनकी पत्रिका तो अगले सप्ताह ही

  1. इसपर डाककी जो मुहर लगी है वह ७ मई, १९२४ को है।
  2. नवजीवन प्रेसको भेजे गये पत्रके लिए देखिए अगला शीर्षक।
  3. यह पत्र स्पष्टतः उसी दिन लिखा गया था जिस दिन इससे पहला शोक।