प्रकाशित की जा सकेगी। जैसी आयी थी वैसी ही तुरन्त भेज रहा हूँ जिससे उनको प्रूफ भेजा जा सके।
- वालजी के भाईका नाम और पता क्या है?
बापूके आशीर्वाद
- गांधीजी के स्वाक्षरों में मूल गुजराती पत्र (जी॰ एन॰ ७७५४) से।
४०३. पत्र : वा॰ गो॰ देसाईको
मंगलवार [६ मई, १९२४ के पश्चात्][१]
तुम्हारा पत्र मिल गया था। तुमने देखा होगा कि उसके अर्द्धांशिका जवाब तो 'नवजीवन' में आ गया है। तुम्हारा यह सुझाव कि 'नवजीवन' का एक पूरा स्तम्भ इसके लिए रखा जाये, कुछ ज्यादा मालूम होता है। हाँ, इस बार तुम उतना स्थान ले लो। इससे तुम्हें 'नवजीवन' के सारे अंक पढ़नेका अवसर मिल जायेगा।
अपने भाईकी योग्यताका ब्योरा लिख भेजो और यह भी कि वे कितना वेतन चाहते हैं।
साथमें तुम्हारे लेखकी टाइप की हुई नकल भेज रहा हूँ। संशोधन और परिवर्धन के लिए उसमें काफी जगह छोड़ दी गई है ताकि तुम्हें प्रूफ मँगवाने की जरूरत न रहे। उसे पढ़कर तत्काल भेज दो ताकि उसे अगले अंकमें लिया जा सके।
- तुम्हारा स्वास्थ्य वहाँ जरूर सुधरेगा।
- मैं मईके अन्ततक आश्रम पहुँचनेकी उम्मीद करता हूँ।[२]
मोहनदासके वन्देमातरम्
- गांधीजी के स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती पत्र (सी॰ डब्ल्यू॰ ६२०३) की फोटो-नकलसे। सौजन्य : वा॰ गो॰ देसाई