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१४. चौरीचौराके बाद

सम्पादक
'यंग इंडिया'
महोदय,

गोरखपुर जिला कांग्रेस कमेटीकी ओरसे हाता तहसीलमें छः व्यक्ति इस बात के लिए नियुक्त किये गये थे कि वे गाँवों में फिरसे सामान्य जीवनकी स्थापनामें सहायक हों। में उनमें से एक था। हाता तहसील चौरीचौरा से लगी हुई है। वहाँ थोड़े ही दिनोंके निवास-कालमें मेरे पास पुलिसके निरंकुश अत्याचारोंकी खबरोंकी हर तरफसे भरमार रही। धनावटीसे यह खबर मिली (और मुझे उसे गलत माननेकी कोई वजह नजर नहीं आती) कि पुलिसने लोगों से चौरीचौरा के मामलेमें फाँस लेनेका डर दिखाकर रिश्वतके तौरपर रुपये ऐंठे। मुझे गाँवोंका दौरा करते समय, उसरीमें अधिकृत रूपसे बताया गया कि देवगाँवके तीन व्यक्ति—छत्रधारी, राम खगोद और अमलूसे पुलिसके घुड़सवारोंने भाले दिखाकर, क्रमशः दस रुपये, दो रुपये और एक रुपयेकी रकमें ली हैं। लोगोंको क्रूरतापूर्वक मारने-पीटने की खबरें भी मिलीं। उभाँव गाँवके भगेलुआ कोरीके शरीरपर बेरहमी से बरसाये गये कोड़े या बेंतोंके गहरे-गहरे निशान तो खुद मैंने अपनी आँखों देखे। पीटने के बाद उससे एक रुपया भी छीन लिया गया जो कांग्रेस कोषका था। मैं ऐसे लोगोंको जानता हूँ जो सचमुच लूट गये हैं। यदि सरकार इन खबरोंका खण्डन करती है तो जो आरोप मैंने लगाये हैं उनकी सच्चाई सिद्ध करनेकी जिम्मेदारी मेरी होगी।
यह निर्विवाद है कि पुलिसके बहुतसे कारनामें तो जनताके सामने कभी आते ही नहीं। बेचारे खालाबादियों (बस्ती तहसीलके लोगों) पर जो अगणित मुसीबतें ढाई गई और वे उन्हें जिस असीम धैर्यके साथ सह रहे हैं, यदि आपको इसका पता लगे तो आप उनपर आशीर्वादोंकी वर्षा किये बिना नहीं रहेंगे।
सुदर्शन भवनआपका
इलाहाबाद, २८–२–१९२२जंगबहादुर सिंह

चौरीचौरामें जन-समूहका अपराध कुछ भी क्यों न रहा हो, विभिन्न संवाददाताओंने पुलिस के जिन अत्याचारोंकी खबरें भेजी हैं वे अत्याचार सर्वथा अन्यायपूर्ण हैं।