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टिप्पणियाँ

लोगोंके पास इनका यही इलाज है कि इन अत्याचारोंके बावजूद वे पुलिससे प्रेम करें और उसे गलत रास्तेसे हटायें।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, ९–३–१९२२
 

१५. टिप्पणियाँ
किंकर्त्तव्य विमूढ़

लाहौरसे एक सज्जनने ३ मार्चको लिखा है :

बारडोलीके फैसलेके बारे में जो भी तथ्य प्रकाशमें आये हैं, उनसे ऐसा लगता है कि यह फैसला या तो पण्डित मालवीयके[१] प्रभावमें आकर या अहिंसाकी किसी क्लिष्ट कल्पनाके कारण किया गया है। यदि पहली बात है तो यह बहुत ही अनुचित है, और यदि दूसरी है तो अत्यन्त अविवेकपूर्ण है। क्या यह ठीक नहीं है कि कांग्रेसका आदर्श स्वराज्य है, अहिंसा नहीं? लोगोंने अहिंसाको आम तौरपर अपना लिया है, जो कांग्रेसके उद्देश्यके लिए निश्चय ही पर्याप्त होना चाहिए। बम्बई और गोरखपुर-जैसी अहिंसा-भंगकी इक्की-दुक्की घटनाओंके कारण पूरे आन्दोलनको ठप कर देना मेरी समझमें नहीं आता। और यदि एम॰ पॉल रिचर्डका यह कहना सच है कि आप अहिंसाकी मार्फत एक विश्व-नेता बननेकी महत्वाकांक्षा रखते हैं, चाहे इसके लिए भारतीय हितोंकी हानि ही क्यों न होती हो, तो यह निश्चय ही एक अशोभनीय और, माफ कीजिए, बेईमानीकी बात भी है।
और फिर क्या आपने आन्दोलनको सहसा रोक देनेके परिणामोंपर विचार कर लिया है? नतीजा श्री मॉन्टेग्यूकी[२] धमकीके रूपमें हमारे सामने है। लॉर्ड रीडिंग[३] और उनकी सरकारका रुख हमारे प्रति जितना कठोर आज है उतना पहले कमी नहीं था। उसने लगभग घुटने टेक दिये थे। जहाँतक जनताका सवाल है, विभिन्न वर्गों और जन-साधारणमें भी आमतौरपर अविश्वासको भावना व्याप्त है। लोगोंके साथ इस तरह खिलवाड़ करना खतरनाक बात है। उनकी इस झुंझलाहट और निराशासे यह प्रकट होता है कि वे यह संघर्ष प्राण-पणसे चला रहे थे। क्या आपको यह दिखाई नहीं देता कि इससे लोगोंको बड़ा धक्का लगा है और इस तरहके एक-दो आघात और लगे कि लड़नेवालोंका हौसला पस्त हो जायेगा।
  1. पण्डित मदनमोहन मालवीय (१८६१–१९४६)।
  2. भारत-मन्त्री, १९१७–२२।
  3. लॉर्ड रीडिंग (१८६०-१९३५); भारतके वाइसराय और गवर्नर जनरल, १९२१-२६।