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परिशिष्ट

तो मैं समझता हूँ कि खिलाफत और स्वराज्य के सवाल अपने-आप तसल्लीबख्श तरीकेसे हल हो जायेंगे, क्योंकि हमारे मकसदोंके पूरा होने का इस एकतासे इतना गहरा सरोकार है कि मुझे दोनों चीजें बिलकुल एक ही दिखाई देती हैं।

अब सवाल यह पैदा होता है कि हम इस असली और टिकाऊ एकताको कैसे हासिल करें? मैं इसका सिर्फ एक जवाब खोज पाता हूँ। हम इसे अपने दिलोंकी सचाई और सफाईसे ही हासिल कर सकते हैं। जबतक हममें से हरएक शख्स अपने दिलसे खुदगर्जीको निकाल नहीं देता, तबतक देश अपने मकसदको पूरा करनेमें कामयाब नहीं होगा। मैं जानता हूँ कि इस हुकूमत के कारण पिछले सौ सालमें जो तफरकात पैदा हो गये हैं, वे बहुत जल्दी दूर नहीं किये जा सकते और इसी कारण हम अपनी कोशिशोंके तुरन्त कामयाब होने की उम्मीद नहीं कर सकते। लेकिन इसमें कोई शक नहीं हो सकता कि हमने पीढ़ियोंका काम महीनोंमें कर लिया है और हमारे बीच कुछ नाउम्मीद लोग जिस कामको नामुमकिन मानते थे, हम सचमुच उसे पूरा करने में कामयाब हो गये हैं।

मैं खिलाफत के सवालको या दूसरे लफ्जों में इस्लामी नीति के विकासके सवालको कोई आज या कलकी चीज नहीं मानता। जिस तरह पिछले सैकड़ों सालसे वह एक-न-एक शक्ल में सामने आता रहा है उसी तरह अगले सैकड़ों सालमें भी वह हमारे सामने आता रहेगा। खुदा ही जानता होगा कि वह आखिरी तौरपर कैसे और कब हल होगा। इसलिए जो लोग सही माती में हिन्दू-मुस्लिम एकता में यकीन नहीं रखते, उन्हें भी यह तो समझ ही लेना चाहिए कि व्यवहार-नीतिके तौरपर भी इसे सैकड़ों साल चलाने की जरूरत है। यह एक मानी हुई बात है कि भारतकी मौजूदा हालतको देखते हुए हिन्दू-मुस्लिम एकता के बाद दूसरा अहम सवाल अहिंसाका ही है। उस ओर हमारी या ज्यादा ठीक कहूँ तो आपकी कोशिशें कहाँतक कामयाब हुई हैं यह तो घटनाक्रमसे ही साफ हो जाता है। लेकिन इस ओर हमारी कामयाबीका सबसे शानदार सबूत उत्तरी-पश्चिमी सीमान्त प्रदेशने पेश किया है, जहाँ अहिंसाकी कामयावी की उम्मीद सबसे कम थी। जब भारत के उस कोने में हम अपने भाइयोंको आम तौरपर अहिंसाकी ढालसे अपने मुखालिफोंके हिंसात्मक हमलोंका सामना करते पाते हैं तब हमें यकीन हो जाता है कि देश में अहिंसाकी भावना तसल्लीबख्श पैमानेपर फैल चुकी है और फैल रही है।

इस मामले में संयुक्त प्रान्तके बारेमें कुछ शक किया जाता है, लेकिन मेरी अपनी राय है कि राष्ट्रीय कार्यकर्त्ताओंकी कमी के कारण लोगोंको कांग्रेसका तरीका और उसूल अच्छी तरह समझाया नहीं गया है। फिर भी मुझे पूरा यकीन है कि संयुक्त प्रान्त भी बहुत जल्दी दूसरे प्रान्तोंके दर्जे में आ जायेगा।

यदि देश के कुछ हिस्सों में किन्हीं खास या आम वजहोंसे कभी-कभी हिंसा हो गई है तो उससे नाउम्मीद होनेका कारण नहीं होना चाहिए। यह जानते हुए कि हमने ३३ करोड़ की आबादी के बीच थोड़े-से कार्यकर्त्ताओंको लेकर केवल १८ महीने ही काम किया है, हमें ऐसी इक्की-दुक्की घटनाओंसे चौंकना न चाहिए; किन्तु साथ ही ऐसी घटनाओंकी अहमियत को भी हमें कम करके नहीं आँकना चाहिए और दुबारा ऐसी वारदात