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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

न होने देने की पूरी कोशिश करनी चाहिए। भारतमें रहनेवाली जातियोंकी एकता और अहिंसा दोनों मौजूदा तहरीककी कामयाबी की जरूरी शर्तें हैं।

बेशक हमें अपने मकसदों को पूरा करनेमें खद्दरसे भी बेशकीमती मदद मिलेगी। उससे हमारी एकता जाहिर होगी और हम यह जानेंगे कि हम स्वराज्यकी ओर कितना आगे बढ़े हैं। मेरा खयाल है कि खद्दरको लोकप्रिय बनाने के लिए धरना देना उतना जरूरी नहीं है जितना जरूरी उसे देश मानता है। देश उसे जल्दीका रास्ता समझता है और अपने थोड़े-से समयको उसमें खर्च कर देता है। हालाँकि जैसा आपने भी कहा है, असली काम तो लोगों के मनमें देशकी बनी चीजोंके लिए प्रेम पैदा करना है। लेकिन जहाँतक मेरा खयाल है, हमारी कांग्रेस कमेटियोंने इस काम में काफी वक्त नहीं लगाया है। इसी वजहसे वे अपनी लापरवाहीसे हुए नुकसानको, धरनेका अपेक्षाकृत आसान तरीका अपनाकर पूरा करना चाहती हैं। किन्तु मैं उम्मीद करता हूँ कि आगेसे विभिन्न कांग्रेस कमेटियाँ जनताको हाथ-कते सूतकी हाथ-बुनी खादी के इस्तेमालके लिए राजी करने के कामको आदर्श मानकर अपने हाथ में लेंगी और उसे धरनेकी बनिस्बत ज्यादा पसन्द करेंगी।

आपने अपने खतमें अछूतों के सवालपर भी कुछ लिखा है। ऊपरसे देखनेपर शायद यह सवाल एक खास कौमका सवाल मालूम दे। लेकिन दरअसल यह एक राष्ट्रीय सवाल है, क्योंकि जिन अलग-अलग हिस्सोंसे यह राष्ट्र बना हुआ है, वे सभी हिस्से जबतक तरक्की नहीं करते तबतक पूरा राष्ट्र तरक्की नहीं कर सकता। जिनके मनमें मुल्क के फायदेका खयाल हो, ऐसे हरएक आदमीका फर्ज है कि वह ऐसे सभी सवालोंमें दिलचस्पी ले जिनका असर राष्ट्रकी तरक्कीपर पड़ता है। इसलिए हमें राष्ट्रकी दुनियावी या नैतिक तरक्की के रास्ते में आनेवाली सभी रुकावटोंकी ओर ध्यान देना चाहिए। इसलिए यह सवाल जितनी अहमियत हिन्दुओंके लिए रखता है, उतनी ही मुसलमानों के लिए भी रखता है। इसी तरह अगर मुसलमान तालीममें पिछड़े हुए हैं, तो हरएक अच्छे हिन्दूको तालीमके लिहाजसे उनकी तरक्कीका खयाल करना चाहिए, क्योंकि उसके लिए की गई हर कोशिश तालीमके लिहाजसे समूचे राष्ट्रकी तरक्कीके लिए उठाया गया कदम होगी, चाहे वह ऊपरसे देखने में एक ही जाति के लिए फायदेमन्द क्यों न दिखाई दे। इसलिए मैं उम्मीद करता हूँ कि मुल्क अछूतों के सवालपर जितना ध्यान देना चाहिए उतना ध्यान जरूर देगा।

बारडोली और दिल्लीकी तजवीजों में मुल्कके लोगोंसे आपके पेश किये हुए रचनात्मक कार्यक्रमपर अमल करने के लिए जमकर कोशिश करने को कहा गया है। इस बारे में मेरा खयाल है कि अगर हम सविनय अवज्ञा शुरू करें तो हमें रचनात्मक कार्यक्रमकी कामयाबी के लिए जरूरी वातावरण नहीं मिलेगा। कोई बीचका रास्ता ढूँढ़ सकना बहुत मुश्किल है। मैं मानता हूँ कि इस सवालपर कार्य समिति पूरी तरह गौर करेगी और जरूरी और ठीक रास्ता अपनायेगी।

अब चूँकि हम रचनात्मक कार्य शुरू कर रहे हैं; इसलिए हमें अपनी जरूरतोंके मुताबिक कांग्रेस-कार्यालयका नये सिरेसे गठन करना चाहिए। हमें कामको बाँट देना