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परिशिष्ट

चाहिए और अलग-अलग कामोंके लिए अलग-अलग महकमे बनाने चाहिए।

हर महकमा उस काम के लिए चुने गये कार्य समिति के मेम्बरके हाथ में रहना चाहिए। मैं आपकी प्रार्थनामें शरीक हूँ और आपको भरोसा देना चाहता हूँ कि हालांकि अपनी खराब सेहत के कारण मैं देशको बहुत ज्यादा खिदमत नहीं कर सकूंगा, फिर भी जबतक श्री चित्तरंजन दास दुबारा हमारे बीच नहीं आ जाते, तबतक मैं अपना फर्ज़ निष्ठाके साथ पूरा करने की कोशिश करूँगा। मैं खुदासे यही दुआ करता हूँ कि आपने और देशने सत्य और न्यायकी खातिर जिस पाक कामको अपने हाथमें लिया है, उसे पूरा करने में वह हमारी मदद करें। आपका जेल जाना हमारे तीनों मकसदोंके पूरा होने में सहायक हो।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २३–३–१९२२
 

परिशिष्ट २
च॰ राजगोपालाचारीसे भेंट[१]

श्री देवदास गांधी औरमैं पिछले शुक्रवारको महात्माजीसे मिलने पूना गये। हमें मालूम हुआ था कि वे यरवदा जेलमें हैं। भारत सेवक समाजके सदस्य श्री ठक्करने हमें बताया था कि जेल सुपरिन्टेन्डेन्टको तीन महीने में केवल एक ही भेंटकी अनुमति देनेकी आज्ञा है। महात्माजी के सुपुत्र देवदास श्री ठक्कर और मुझे साथ लेकर जेल गये और सुपरिन्टेन्डेन्टसे महात्माजीसे भेंटकी अनुमति देनेकी प्रार्थना की। हमें बताया गया कि देवदासके साथ श्री ठक्कर या मैं—केवल एक आदमी जा सकता है।

इसके बाद वार्डर कैदीको सुपरिन्टेन्डेन्ट के कमरेमें लाया और हमें अन्दर बुलाया गया। सुपरिन्टेन्डेन्ट अपनी कुर्सीपर बैठें थे और महात्माजी उसकी मेजके सामने खड़े थे। उन्हें मुलाकात में पूरे समय खड़े ही रहना पड़ा।

भोजनके सम्बन्धमें प्रश्न किये जानेपर महात्माजीने कहा : "मुझे रोटी और बकरीका दूध दिया जाता है; सारा दूध एक साथ ही दे दिया जाता है। मैं अब तीन बारकी बजाय दो बार भोजन करता हूँ।" आप फलोंके लिए क्या करते हैं, यह पूछने पर उन्होंने कहा : "मुझे प्रतिदिन दो सन्तरे दिये जाते हैं। मैंने कह दिया था कि मेरे सामान्य भोजनमें किशमिश सम्मिलित हैं; परन्तु अभी मुझे उनकी अनुमति नहीं मिली है। किन्तु सुपरिन्टेन्डेन्टने वादा किया कि किशमिशोंकी अनुमति दे दी जायेगी।" महात्माजी के लिए दूध स्टोवपर आँगनमें गर्म किया जाता है, जिसे कुछ अरब कैदी काममें ला रहे हैं।

श्री शंकरलाल इसी जेलमें हैं; किन्तु महात्माजीको उनसे या किसी भी अन्य व्यक्ति अथवा कैदीसे नहीं मिलने दिया जाता। उन्हें एक ऐसी कोठरीमें रखा गया है,

  1. यह भेंट शनिवार १ अप्रैल, १९२२ को हुई थी।