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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जो तनहाईकी सजा देनेके लिए बनाई गई है और जिसमें रातमें ताला लगा दिया जाता है। कोठरी में दो रोशनदान हैं, एक छतके पास और दूसरा जमीनसे लगा हुआ। कोठरी के साथ एक बरामदा है और उसकी बगलमें आँगन है जिसके कुछ हिस्से में वे दिनके समय घूम सकते हैं। रातमें टट्टी और पेशाबका बर्तन भी उसी छोटी कोठरी में रखा जाता है। हमारी भेंटके वक्त सुपरिन्टेन्डेन्टने वादा किया कि आगे से उस भद्दे बर्तनकी जगह कमोड़ रखवा दिया जाया करेगा।

महात्माजीको बाहरसे कोई भी चीज मँगवाने की इजाजत नहीं है। उन्हें अपना बिस्तर रखने की भी इजाजत नहीं है। उन्हें भी सबकी तरह जेलके दो कम्बल दिये गये हैं। मैंने जिज्ञासावश पूछा कि क्या आपके पास तकिया है ? उन्होंने कहा, तकिया नहीं है। जब मैंने इसपर आश्चर्य प्रकट किया तो सुपरिन्टेन्डेन्टने बीचमें टोककर कहा कि तकिया तो आराम की चीज है। बर्तनोंमें महात्माजी के पास जेलका सामान्य लोटा और तश्तरी है किन्तु उन्हें बहुत हुज्जत करनेपर अपना चम्मच रखनेकी इजाजत दे दी गई है। हमारी भेंटके दौरान सुपरिन्टेन्डेन्टने कहा कि यदि महात्माजी अर्जी देंगे तो वे उसे सरकार के पास भेज देंगे। उन्हें अपने लिखने के कागज और कलमसे वंचित नहीं किया गया है। वे उनका इस्तेमाल अभी केवल अपने-आप उर्दू सीखने में कर रहे हैं। महात्माजी हमेशा की तरह अपनी लंगोटी पहने हुए थे। उनका स्वास्थ्य हमें तो अच्छा नहीं दिखाई दिया, किन्तु जेलरका कहना था कि उनका वजन बढ़ गया है।

जाहिर है कि जितना मैंने बताया उसी हदतक खाने में फर्क के अलावा अन्य सभी मामलों में महात्माजी से बम्बईके जेल-नियमों के अनुसार एक साधारण कैदीके जैसा बरताव किया जाता है और बम्बईके जेल-नियम कई बातों में अन्य प्रान्तोंके जेल-नियमोंसे बदतर हैं। महात्माजीने मुझसे कहा कि वे नहीं चाहते कि उनके जेल जीवनके बारेमें कोई शिकायत की जाये। अहमदाबाद के प्रसिद्ध मुकदमे में न्यायाधीशने जो सुन्दर शब्द कहे थे उनसे हम सबको यह आशा बँधी थी कि बम्बई सरकार यदि इन महान् बन्दीके साथ उनके सर्वथा योग्य या उनकी इच्छा के अनुरूप बरताव नहीं करेगी तो कमसे-कम वैसा बरताव तो करेगी ही जैसा एक सभ्य सरकार अपेक्षाकृत महत्त्वपूर्ण युद्ध-बन्दियोंके साथ करती है; किन्तु हमारी इस भेंटसे भारतमें अंग्रेजों के शासनके वास्तविक रूपके सम्बन्ध में हमारी आँखें पूरी तरह खुल गई हैं।

[अंग्रेजीसे]
हिन्दू, ३–४–१९२२