पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 23.pdf/६२७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

 

परिशिष्ट ५
जेलमें भेंट

[१० सितम्बर, १९२३]

गांधीजी से सोमवार के दिन यरवदा जेलमें भेंट की गई थी। उनका स्वास्थ्य तीन महीने पहलेकी बीमारी के बादसे काफी अच्छा चल रहा है। उन्हें अब भी दूध, रोटी और फल दिये जाते हैं और यह खूराक उन्हें अभीतक काफी माफिक रही है। यद्यपि वे पूर्णतः प्रसन्न चित्त और स्वस्थ दिखाई पड़ते हैं, किन्तु उनकी सामान्य आकृति-प्रकृतिसे लगता है कि उनपर समय और गहन धार्मिक अध्ययनका प्रभाव अवश्य पड़ा है। उनका वजन अब १०१ पौंड है जो उनकी गितारीके वक्त लिये गये वजनसे १३ पौंड कम है। वे अपना समय कातने के अलावा मुख्यतया 'वेदों' और 'उपनिषदों' के अध्ययनमें और उर्दू सीखने में बिताते हैं। उन्हें उर्दू सीखने में श्री मंजर अली सोख्ता मदद देते हैं। जब उनको यह बताया गया कि उनकी रिहाईकी अफवाहोंपर देश में कैसे अनुमान लगाये जा रहे हैं तब वे बहुत हँसे और हँसते हुए उन्होंने कहा, मुझे अपनी जल्दी रिहाईसे दुःख होगा, क्योंकि उससे मेरे अध्ययनमें रुकावट आ जायेगी।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया १३–९–१९२३
 

परिशिष्ट ६
ड्रू पियर्सनकी सर जॉर्ज लॉयडसे भेंट

मैं महात्मा गांधी की गिरफ्तारी के ठीक डेढ़ साल बाद गांधी-दिवसपर शहरके पासकी उस जेलमें गया जिसमें वे बन्दी हैं और मैंने उस अधिकारीसे बातचीत की जो उनकी गिरफ्तारी के लिए भारतमें किसी भी अन्य मनुष्यकी अपेक्षा ज्यादा जिम्मेदार था। यह अधिकारी भारतके उच्चतम अधिकारियोंमें से है। मैं उनका नाम नहीं बता सकता। उन्होंने महात्माजी से अपनी बातचीतका और गिरफ्तारीकी कारणभूत घटनाओं का वर्णन ऐसी सजीव भाषामें किया कि मुझे एक तरहसे ऐसा लगा मानो उनके सामने गांधीजीकी क्षीण काया मौजूद हो। उन्होंने जो बात मुझे बताई वह बहुत कम लोगोंने ही सुनी होगी।

मुझे बताया कि जब असहयोग आन्दोलन पूर्ण उत्कर्षपर था तब उन्होंने गांधीको अपने दातरमें बुलाया था, गांधीने इंग्लैंडके बने कपड़ोंकी बड़ी-बड़ी होलियाँ जलवाई थीं। स्कूलों और अदालतोंका बहिष्कार किया था, जो बहुत सफल हुआ था,