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परिशिष्ट

कालतक गिरफ्तार करते नहीं रह सकते, यह तो आप जानते ही हैं, और खासकर तब, जब उनकी संख्या ३१९,०००,००० हो। यदि लोग उनके कार्यक्रमके दूसरे अंगपर अमल करते और करोंकी अदायगीसे इनकार कर देते तो पता नहीं हम कहाँ होते। गांधीका यह प्रयोग विश्वके इतिहास में महानतम प्रयोग था और वह करीब-करीब सफल हो गया था। लेकिन लोगोंका रोष, उद्वेग उनके काबू में नहीं रह सका। वे हिंसा कर बैठे और गांधीने अपना कार्यक्रम वापस ले लिया। शेष जो कुछ हुआ वह आप जानते ही हैं। हमने उन्हें जेल भेज दिया। में तीन दिन पहले उनसे जेलमें मिला था। लगता था कि उनका जीवन कुछ नीरस है। मैं समझता हूँ कि शायद वे जेलसे मुक्त होना चाहते थे। उनकी शिकायत थी कि मैं उन्हें किसी समाचारपत्रकी अनुमति नहीं देता। उन्होंने कहा, मैं तो यह भी नहीं जानता कि प्रधानमन्त्री कौन है। मैंने उनसे कहा, राजनीतिकी पूर्ण जानकारी रखने के लिए सबसे अच्छा तरीका तो जेलके बाहर रहना है। आपको यह जानकर खुशी होगी कि मैं कुछ महीनों में ही जा रहा हूँ। आप और हम कभी अच्छे दोस्त नहीं रहे, परन्तु कमसे कम हम एक-दूसरे से साफ-साफ बातें तो कर ही लेते थे।"

यहाँ मैंने बीचमें वह सवाल पूछा, जिसे पूछने के लिए मैं आया था; मैंने कहा, क्या मुझे जेल में गांधीसे मिलने की अनुमति मिलेगी?

परमश्रेष्ठने बीचमें ही उत्तर दिया, "सर्वथा असम्भव। गांधीको कैद करनेका एकमात्र तरीका यही है कि उन्हें जीवित ही दफना दिया जाये। यदि हम लोगोंको यहाँ आने और उनके सम्बन्धमें अनावश्यक बात करने की छूट दे दें तो वे शहीद बन जायेंगे और जेल संसारके लिए मक्का हो जायेगी। हमने गांधीको काँटोंका ताज पहनाने के लिए जेल में नहीं रखा है।"

मैंने पूछा, क्या छः सालकी कैदकी मीयाद पूरी होनेसे पहले गांधीकी रिहाई सम्भव है। उन्होंने जोर देकर कहा :

"जबतक मैं यहाँ हूँ, तबतक नहीं। हाँ, मेरा कार्यकाल दिसम्बर में समाप्त हो रहा है। मैं इंग्लैंड चला जाऊँ, उसके बाद सरकार कुछ भी कर सकती है।"

जेल में श्री गांधीका जीवनक्रम बतानेके बाद श्री पियर्सन लिखते हैं :

उनके पुत्रने मुझे बताया कि श्री गांधीका धार्मिक सिद्धान्त दो चीजोंपर आधारित है : सत्य और अहिंसा। वे उन सभी बाह्य रूपों और कर्मकाण्डोंको छोड़ने के लिए तैयार हैं जिन्हें संसार धर्म कहता हैं, वे केवल इन दो मूल सिद्धान्तोंको ही कायम रखना चाहते हैं।

उनके पुत्रका कहना है कि श्री गांधी जनताकी आम मांगका दबाव डालकर जेल से रिहा होना नहीं चाहते, बल्कि भारतीय जनता के प्रति सरकारका हृदय परिवर्तन होनेपर स्वयं सरकारके हाथों ही रिहाई चाहते हैं। वे राजनीतिसे पृथक होनेका वचन देकर रिहा न होंगे; बल्कि तभी रिहा होंगे जब वे अपना शेष जीवन अपने देशकी स्वतन्त्रता प्राप्त करने में बितायेंगे।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २२–११–१९२