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परिशिष्ट

ऐसे ही नहाना और जनेऊ बदलना होता है, जैसे कट्टरसे-कट्टर रूढ़िवादीको किसी परियाको छूने या उसके बहुत पास जानेपर। श्री शंकराचार्यने धर्मके इस पक्षका पूरी तरह समर्थन नहीं किया है। उन्होंने कहा है कि रजस्वला स्त्रीका वास्तविक स्पर्श होनेपर नहाना और जनेऊ बदलना पर्याप्त है; परन्तु उसके पास जाने मात्रसे अशुद्धि नहीं होती। इस प्रकार इन सब तथ्योंसे आप देखेंगे कि मेरे कहनेका अभिप्राय इससे अधिक कुछ नहीं था कि जो शिकायत सचमुच मौजूद है और जिसे दूर करना हमारा पवित्र कर्त्तव्य है, उसका रूप और क्षेत्र व्यर्थ न बढ़ाया जाये जिससे हिन्दू समाजके उच्च वर्गोंने उनको जान-बूझकर नीचे गिरानेके लिए अस्पृश्यताका सिद्धान्त निकाला है, इस भ्रमसे पीड़ित लोगोंके मनमें अनावश्यक कटु भाव पैदा न हो। आशा है, आप मुझसे सहमत होंगे कि यदि दोनों पक्षोंमें से किसीमें भी भ्रान्त धारणाएँ न हों और पीड़ित लोग समस्याके कारणके भ्रान्तिपूर्ण निदानसे और शिकायतको अनुचित रूप देनेसे उत्पन्न कटुताके कारण कोई अशोभनीय भाव प्रदर्शित न करें तो हमारे सामूहिक राष्ट्रीय जीवनमें इस महत्त्वपूर्ण विषयमें सुधार करना ज्यादा आसान होगा। आशा है, हम जब फिर मिलेंगे और मुझे अपने पिछले और वर्तमान विचार आपको बतानेका सौभाग्य मिलेगा तब मैं आपको यह विश्वास करा सकूँगा कि अपने देशको इस संसारके महान् राष्ट्रोंके बीच उचित स्थान दिलाने के लिए मैं अपने देशके जो कर्त्तव्य और अधिकार समझता हूँ, उनके सम्बन्धमें मेरे विचार, आपके इस पत्रसे जैसा लगता है उसकी अपेक्षा कहीं अधिक समझदारी भरे, अधिक उचित और अधिक उदारतापूर्ण हैं।

श्रीमती गांधीको प्रणाम, आदरणीय श्री सी॰ एफ॰ एन्ड्रयूजको नमस्कार एवं बच्चोंको प्यार। आशा है कि आपका स्वास्थ्य दिनोंदिन सुधर रहा होगा और आप जल्दी ही पूर्ण स्वस्थ हो जायेंगे। आपको सादर अभिवादन सहित;

हृदयसे आपका,
सी॰ विजयराघवाचार्य

[पुनश्च :]

कोकोनाडा कांग्रेसने कथित समझौता-प्रस्तावको असहयोगका प्रस्ताव मानकर व्यवहारमें दुःखपूर्ण क्षुद्रता दिखाई है। मैं इस सम्बन्धमें आपका ध्यान मसूलीपट्टमके डा॰ पट्टाभि सीतारामैया द्वारा सम्पादित 'जन्मभूमि' के रुखकी ओर खींचना चाहता हूँ। इस पत्रने इसका विरोध मुझसे भी अधिक किया है और सीतारामया सच्चे कांग्रेसी हैं। आपका उनसे ज्यादा शुद्ध और निष्ठावान अनुयायी दूसरा कोई नहीं है।

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ ८५७०) की फोटो-नकलसे।