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परिशिष्ट ११
(क) रामानन्द संन्यासीका पत्र

बलदेव आश्रम
खुरजा (संयुक्त प्रान्त)
१ अप्रैल, १९२४

श्रीमान् महात्माजी,

आपका २८ तारीखका पत्र मिला। मुझे खेद है कि पहले पत्र में मैंने आपको कोई ब्यौरा नहीं लिखा।

(१) १९२१ की घटनाके बाद भरती बिलकुल बन्द हो गई थी। व्यापार मन्दीपर था और इंग्लैंड तथा भारत, दोनों ही जगह, भारतकी चाय काफी जमा थी। इस समय बाजारके भाव चढ़नेसे और जमा चायके खप जानेसे चाय बागान के मालिकोंको और ज्यादा मजदूरोंकी जरूरत महसूस हुई ताकि १९२१में छोड़े हुए बागानोंमें फिर चायकी खेती की जा सकें। इस समय भरती पिछले नवम्बर में शुरू हुई थी। मुझे सूचना अपने एक दोस्त से मिली थी। वे जिला गुड़गाँव (पंजाब) में डिस्ट्रिक्ट इंजीनियर हैं। उसके बाद मुझे संयुक्त प्रान्तके लगभग छः जिलोंसे और पंजाब के दो जिलोंसे सूचना मिली। मैंने जनवरी में समाचारपत्रोंके नाम एक वक्तव्य जारी किया था जिसमें मैंने लोगोंको भरतीके परिणामोंसे आगाह किया था। बागानोंके आंग्ल-भारतीय एजेंटोंने सावधानीसे उन जिलोंको छोड़ दिया था जिनसे वे १९२१की घटनासे पहले मजदूर भरती किया करते थे।

(२) उपर्युक्त विवरण में आपके दूसरे और तीसरे प्रश्नोंके उत्तर भी आ जाते हैं।

(३) मैं चायके बागानोंमें यही जाँच-पड़ताल करना चाहता हूँ कि वहाँ इस समय वास्तवमें कैसी स्थिति है, क्या मजदूरोंकी नैतिक और आर्थिक स्थितिमें पहले से सुधार हुआ है; और यदि किसी भी दिशा में कोई भी सुधार नहीं हुआ हो तो क्या उन क्षेत्रों में मजदूरों का जाना बन्द करना देशके सामान्य हित में नहीं होगा, ताकि और अधिक लोगोंका चारित्रिक और नैतिक पतन न हो।

(४) जहाँतक मुझे पता लगा है, भरती किये जानेवाले मजदूरोंको कामकी कोई लिखित शर्तें नहीं बताई गई, लेकिन मुख्यतः उनकी शर्तें इस प्रकार थीं :

(१) पति और पत्नी दोनोंको ३० रु॰ मासिक मजदूरी (२) मकान, ईंधन और डाक्टरी देखभाल मुफ्त। (३) यदि नये मजदूरको जगह पसन्द न हो तो रेलका वापसी टिकट मुफ्त। लेकिन आप स्वयं अन्दाज लगा सकते हैं कि यदि एक बार कोई चायबागानके जिलोंमें मजदूरके रूपमें चला जाता है तो उसके लिए वहाँ से लौटना कितना कठिन होता है। मैं आपके इस सुझावको बिलकुल स्वीकार