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परिशिष्ट

से रोशन कर दे। फिर भी मैं जोर देकर अपने इस अकदेका ऐलान करना चाहता हूँ कि इस्लाम, हिन्दू, यहूदी, ईसाई या पारसी किसी भी मजहबका आज ऐसा कोई भी नुमाइंदा मौजूद नहीं जो महात्माजीकी तरह नेकचलन और उसूलोंका पाबन्द हो। इसीसे मेरे दिलमें उनके लिए इतना अदब और मुहब्बत है। मैं अपनी माँका बहुत अदब करता हूँ और अगर इस्लामकी सच्ची नसीहत हर हाल में सब करना और एहसानमन्द रहना है तो मेरा दावा है कि कोई भी इन्सान—चाहे वह धर्मका कितना भी बड़ा पण्डित हो—इस्लामको मेरी माँसे ज्यादा अच्छी तरह नहीं समझा है। इसी तरह मैं मौलाना अब्दुल बारीको अपना मजहबी रहनुमा मानता हूँ। उनकी मेहरो-मुहब्बत से मैं बँधा हुआ हूँ। मैं उनके हृदयकी निश्छलताकी बहुत तारीफ करता हूँ। लेकिन इसके बावजूद मैं यह कहने की हिम्मत करता हूँ कि मुझे आजतक ऐसा कोई भी इन्सान नहीं मिला जो सच्चे अमलके नजरिये से महात्मा गांधीसे ऊँचे स्थानपर बैठने लायक हो।

लेकिन मजहबी अकीदे और अमलमें बड़ा फर्क है। इस्लामको माननेवाला होने के नाते मैं यह मानने के लिए मजबूर हूँ कि इस्लामके उसूल इस्लामके अलावा किसी भी दूसरे मजहबको माननेवालों के उसूलोंसे ऊँचे हैं। इस नजरिये से एक पस्त और गिरे हुए मुसलमानके मजहबी उसूल भी एक गैर-मुसलमानके मजहबी उसूलोंके मुकाबिले ऊँचा दर्जा पानेके मुस्तहक हैं—भलेही वह गैर-मुसलमान कितना ही पाक और नेकचलन क्यों न हो, और चाहे वह खुद महात्मा गांधी ही क्यों न हों।

लखनऊमें जब मेरी तकरीर शुरू होने से ठीक पहले किसीने ऊपर बताये गये सवालकी एक नकल जवाब के लिए मुझे दी और बहुत-सी नकलें सुननेवालों में भी बाँटी थीं तब मैंने कहा था कि मैं ऐसे किसी सवालका जवाब देना नहीं चाहता; क्योंकि मैं समझता हूँ कि किसी भी इन्सानको, जबतक वह यह साबित न कर दे कि वह महात्माजी से मेरे मुकाबले ज्यादा मुहब्बत करता है, मुझपर उनकी हतकका इल्जाम लगाने का हकदार नहीं हो सकता। मैंने ऊपर बताया गया जवाब तब दिया, जब मुझे बताया गया कि सवाल यह नहीं है कि मैंने गांधीजीकी हतक की है, बल्कि यह है कि मैंने हिन्दू धर्मकी हतककी है। मेरी उस तकरीरकी रिपोर्ट आजसे करीब एक महीने पहले 'हमदम' में छपी थी। उसमें मैंने यह भी कहा था कि जहाँतक सच्चे अमलसे जुदा मजहबी अकीदेका ताल्लुक है, हर ईसाई यह मानता है कि बहुत ही पस्त गिरा हुआ ईसाई भी एक पाक और नेकचलन मुसलमान या यहूदीसे ज्यादा ऊँचा दर्जा पानेका मुस्तहक है। हिन्दू और दूसरे धर्मोके माननेवाले भी ऐसा ही मानते हैं। जैसा कि मैं बता ही चुका हूँ, मेरा जवाब इतना तसल्लीबख्श साबित हुआ कि एक हिन्दू दोस्तने पुकारकर कहा कि "२२ करोड़ हिन्दू आपका साथ देनेके लिए तैयार हैं।" सुननेवालों में से बहुतसे हिन्दुओंने उसकी बातपर खुशी जाहिर करते हुए 'वन्देमातरम्' और 'अल्लाहो अकबर' के नारे लगाये। दूसरी तरफ जो लोग उस सवालकी छपी हुई नकलें लाये थे, उनका मुँह बिलकुल बन्द हो गया। मजेकी बात तो यह है कि जिन लोगोंने मुझसे इस्तीफेकी माँग की है, उनमें से एक साहबने अभी हाल में मुझे देहरादून में एक आम सभा में आनेके लिए बड़े तपाकसे दावत दी थी।