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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


ऐसे हालात में मैं इन साहबानके कहने या सोचनेपर अपने किसी कामको नहीं छोड़ सकता। इसके अलावा, यह बात पूरी तरह कांग्रेसके इख्तियारकी है। फिर भी मैं यहाँ यह कहना चाहता हूँ और आप भी मेरी इस बातकी ताईद करेंगे कि हालाँकि मैं इस्लामका एक नाचीज बन्दा हूँ, लेकिन अगर ये साहबान मुझे हिन्दू-मुस्लिम एकताका दुश्मन और महात्मा गांधी तथा उनके जानेमाने मजहबी अकीदेकी हतक करनेवाला मानते हों तो मेरा खयाल है कि ऐसा एक भी मुसलमान नहीं होगा जो उन्हें पूरी तरहसे तसल्ली करा सकेगा।

एक बार मैं फिर कहना चाहता हूँ कि यदि मैंने आपसे वादा न किया होता तो मैं यह खत लिखता ही नहीं; क्योंकि मैं इस देशमें आजकल जो कई बहसें छिड़ी हुई हैं उनमें इजाफा नहीं करना चाहता। मैं इस समय अपनी बेटीकी मौत और अपने एक भाई और अपनी माँकी खतरनाक बीमारी की वजहसे जिस्मानी तौरपर इस बहुसमें पड़नेके नाकाबिल हूँ। ऐसे वक्त जिन दोस्तोंने यह बदमजा बहस छेड़ी है मैं उन्हें उनकी अखलाकी तमीजपर ही छोड़ना अच्छा समझता हूँ। मैं एक बार फिर आपकी हमदर्दी के लिए आपका शुक्रगुजार हूँ और इन अल्फाजके साथ खत पूरा करता हूँ कि आप अगर इसके बारे में अखबारोंमें कुछ लिखें तो आप इस खतको ज्योंका त्यों छाप सकते हैं।

आपका,
मुहम्मद अली

(ख) 'तेज' के सम्पादकके नाम मुहम्मद अलीका पत्र

प्रिय महोदय,

स्वामीजी महाराजके खतमें एक ऐसा जुमला था जिसका मतलब लगाया जा सकता है कि मैं हस्तीकी कशाकशसे निजात के लिए अच्छे काम करना जरूरी नहीं मानता। ऐसा न मैं मानता हूँ, न कोई भी मुसलमान। निजातकी जरूरी रातें हैं : अकीदा, अमलकी पाकीजगी, दूसरोंको नेक काम करनेके लिए समझाना और उन्हें बुरे कामोंसे आगाह करना तथा अपने कियेका फल तहम्मुलके साथ भोगना। मैं मानता हूँ कि जिस तरह एक मुसलमान बुरे कामोंके लिए सजा पानेके लायक है उसी तरह एक गैर-मुसलमान भी अपने नेक अमलके लिए अच्छे फलका मुस्तहक है। सवाल निजात के लिए जरूरी शर्तोंका नहीं, बल्कि मजहबी अकीदे और अमलमें फर्कका है। यही वजह है कि मैं महात्माजीको अपने जाने हुए सभी मुसलमानोंसे ऊँचा दर्जा देता हूँ। लेकिन अपने मजहबको सभी गैर-मुसलमानोंके मजहबसे ऊँचा मानना हर मुसलमानका फर्ज है। ऐसा कहकर मैंने अपने ऊपर लगाये गये 'गांधी-परस्ती' के इल्जामका जवाब दिया था। मेरा मंशा बिलकुल यहीं था, हिन्दू भाइयोंके जज्बातको चोट पहुँचाना या महात्मा गांधीकी हतक करना नहीं। इसपर अगर किसीको शिकायत हो सकती है तो मेरे अपने मजहबके लोगोंको ही हो सकती है, क्योंकि