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परिशिष्ट

में उनमें से किसीको भी अमलकी पाकीजगीके नजरियेसे महात्मा गांधीके बराबर नहीं मानता।

मुहम्मद अली

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, १०–४–१९२४
 

परिशिष्ट १४
(क) कौंसिल-प्रवेशके सम्बन्धमें मोतीलाल नेहरूकी टीप

महात्माजीका मसविदा मुझे मिले पूरा एक सप्ताह हो गया है। इस बीच मैंने मसविदेको यथाशक्ति पूरे ध्यानसे बार-बार पढ़ा है और मुझे उसपर महात्माजी से चर्चा करनेका लाभ भी मिला है, जिसके लिए उन्होंने मुझे कृपापूर्वक तीन घंटे से अधिक समय दिया। महात्माजीने जो बातें कहीं, मैंने उनपर चिन्तन और मनन किया है। किन्तु मुझे यह कहते हुए दुःख होता है कि इस दीर्घ चिन्तन और मननसे भी मेरा १८ महीने पहले बनाया हुआ मत पुष्ट ही हुआ है।

मैं मानता हूँ कि महात्माजी और मेरे बीच जो मतभेद है वह केवल व्योरेकी बातोंको लेकर ही नहीं है बल्कि कुछ मामलों में सैद्धान्तिक है। असल में अधिक बारीकी से जाँच करनेपर मेरा खयाल यह बना है कि हमारा यह मतभद ओर भी गहरा है और उसका मूल स्वयं इस सिद्धान्त में नहीं बल्कि स्वयं इस सिद्धान्तके आधारभूत विचारमें है। किन्तु इसके बावजूद मेरा यह विश्वास हो गया है कि इस मतभेदका प्रभाव इस सिद्धान्तको व्यवहारमें लागू करनेपर नहीं पड़ता और हमें वैसा प्रभाव पड़ने भी नहीं देना चाहिए। अब हम अहिंसा और असहयोगपर पृथक-पृथक विचार करें।

(१) "अहिंसा"—इस मामलेकी आवश्यकतासे विवश होने के कारण अहिंसाका जो स्वरूप मैंने स्वीकार किया है उसकी अपेक्षा महात्माजीकी अहिंसाकी कल्पना अधिक ऊँची है। कांग्रेस अहिंसा के सिद्धान्तको उसके सब फलितार्थों और सहज परिणामों सहित स्वीकार नहीं कर सकती और उसने उनको स्वीकार किया भी नहीं है। वह मानती है कि उसके दायरेमें सब धर्मों और सम्प्रदायोंके लोग आते हैं। इस्लाम अहिंसाको जीवनका अपरिवर्तनीय और अटूट नियम नहीं मानता और हिन्दुओंकी कई जातियाँ और धार्मिक शाखाएँ हिंसाके सविवेक प्रयोग में विश्वास रखती हैं। जहाँ महात्माजी किन्हीं भी स्थितियोंमें मन, वचन और कर्मसे हिंसा नहीं करना चाहते वहाँ बहुतसे सच्चे कांग्रेसी ऐसे हैं जो कुछ स्थितियोंमें वास्तविक स्थूल हिंसा करना भी अपना परम कर्त्तव्य मानते हैं। असल में में यह मानता हूँ कि यदि हम विचारमें आने योग्य समस्त स्थितियों में सब प्रकारकी हिंसाका निषेध कर देंगे तो यह मानवकी उच्चतम और उदात्ततम भावनाओंपर बलात्कार करना होगा। यदि मैं किसी बदमाशको अपेक्षाकृत कमजोर आदमीपर आक्रमण करता हुआ या उससे दुर्व्यवहार करता