पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 23.pdf/७२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३८
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


:घुस गये। पहले दो स्वयंसेवकोंके घरोंसे वे १५ रुपयेकी कीमतके बरतन भाँडे ले गये, और तीसरेके घरसे मय पिंजरेके एक पहाड़ी तोता जिसकी कीमत दस रुपये होती है; छः रुपये कीमतकी एक रजाई, वो रुपये आठ आने कीमत की एक धोती, अठारह रुपये कीमतका साढ़े चार मन धान, २० रुपये कीमतको ७ मन मकई, ११ रुपयेका बूटूक (बटलोई), तीन बच्चोंके साथ एक बकरी जिनकी कीमत १० रुपये होती है, इस तरह कुल ६७ रुपये, ८ आनेका माल उठा ले गये। २५ फरवरी, १९२२ को यही सब-इन्स्पेक्टर मुहम्मद जानसे, जो पहले ही जेल में हैं, जुर्माना वसूल करनेके लिए भतौलिया पहुँचे और वहाँ उसके भाई शेख शाबू जानके मकानमें जबरदस्ती घुस गये। एक सालसे भी अधिक समय शाबूको घर-गिरस्ती मुहम्मदको घर-गिरस्तीसे बिलकुल अलग है। वहाँसे वे अनाजकी कोठी तोड़कर ४० रुपयेकी कीमतका १० मन धान, ९ रुपये कीमतका १ मन ५½ पँसेरी चावल और ५ रुपये कीमतका एक कलसा, इस तरह कुल ५४ रुपयेका सामान ले गये।

ये तीनों तार महत्त्वपूर्ण हैं और इनमें दमनका ब्योरा दिया हुआ है। जब कांग्रेस कार्यालय जलाये और लूटे जा रहे हों, कार्यकर्त्ताओंको किसी-न-किसी बहाने जेलों में बन्द किया जा रहा हो, तो सविनय अवज्ञा करनेका लोभ संवरण कर पाना मुश्किल हो जाता है। लेकिन कार्यकर्त्ताओंको सविनय अवज्ञा न करनेकी चेतावनी देता हूँ। यदि वे एक पूर्णतया अहिंसात्मक वातावरण चाहते हैं, तो उन्हें फिलहाल सभी तरहकी उग्र कार्रवाई रोकनी होगी। हर व्यक्तिको खुद ही अपना कांग्रेस दफ्तर और खिलाफत दफ्तर बन जाना चाहिए और अपने कार्यको चरखे और खद्दरके प्रचार तक सीमित कर देना चाहिए। और यदि कोई उसकी बात न सुने, तो उसे मैं यह विश्वास दिलाता हूँ कि यदि वह धुनाई, हाथ-कताई या हाथ-बुनाई—इनमें से किसी भी एक काममें अपना पूरा समय लगाये तो वह उस दिनका सदुपयोग ही होगा। यह एक बहुत ही उपयोगी और स्थायी काम है, जिसमें न तो पीछे हटनेका सवाल है और न गलती की ही कोई सम्भावना है।

भ्रामक प्रचार

डब्ल्यू॰ आई॰ एन॰ लिबरल एसोसिएशन की प्रचार समितिकी ओरसे जो इश्तिहार बाँटे जा रहे हैं, चारों तरफसे पाठकगण उन्हें मेरे पास भेजते जा रहे हैं। मुझे समितिका जोश और सरगर्मी अच्छी लगती है। इसका काम हमारे हितमें ही है; असहयोगियोंको वह चुस्त बनाये रखती है और उन्हें उनकी बुराईसे आगाह करती रहती है। मैं प्रचार समितिको केवल यह सुझाव दूँगा कि अतिरंजनासे उसे कोई लाभ नहीं होगा। मुझे यकीन है कि वह जान-बूझकर अतिरंजनासे काम नहीं लेगी। इसीलिए मैं उसके कुछ गलत बयानोंको सुधारनेका साहस कर रहा हूँ।

इश्तिहार नम्बर ६ में कहा गया है :

गांधी-राज आनेपर भारतका रूप कैसा होगा?