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रेलें नहीं होंगी, अस्पताल नहीं होंगे, मशीनें नहीं होंगी। सेना और नौसेनाकी भी जरूरत नहीं होगी। कारण, गांधी अन्य राष्ट्रोंको यह विश्वास दिला देंगे कि भारत उनके मामलोंमें टाँग नहीं अड़ायेगा, और इसलिए वे भी भारतके मामलों में टाँग नहीं अड़ायेंगे।
न कानून जरूरी होंगे, न न्यायालय जरूरी होंगे, क्योंकि हरएक अपने लिए खुद ही कानून होगा। हर व्यक्तिको, जो वह चाहता है, करनेकी स्वतन्त्रता होगी। जीवन बहुत ही सरल हो जायेगा, क्योंकि हर आदमीके लिए खद्दरकी लँगोटो लगाकर घूमना और खुलेमें सोना लाजिमी होगा।

मैं इसे अतिरंजना नहीं कह सकता। यह तो एक चतुराईसे भरा हुआ विद्रूप है, जिसका प्रयोग पश्चिमी ढंगके संघर्षमें जायज समझा जाता है। किन्तु इन शब्दोंसे जो व्यंजित होता है वह सही नहीं है। मैं बताता हूँ कि मेरा आशय क्या है। पहली बात तो यह है कि भारत "गांधी-राज" कायम करनेकी कोशिश नहीं कर रहा है। वह स्वराज्य कायम करनेके लिए व्याकुल है, और स्वराज्यकी प्राप्तिके लिए गांधीको खुशीसे बलिदान कर देगा। और यह उचित ही होगा। "गांधी-राज" एक आदर्श स्थिति है, और उस स्थितिमें ये पाँचों नकार एक सही तस्वीर पेश करेंगे। लेकिन ऐसी कल्पना कोई कभी नहीं करता है—मैं तो निश्चित रूपसे नहीं करता—कि स्वराज्य में रेलें नहीं होंगी, अस्पताल नहीं होंगे, मशीनें नहीं होंगी, सेना और नौसेना नहीं होगी, कानून और न्यायालय नहीं होंगे। इसके विपरीत, रेलें होंगी; फर्क इतना ही होगा कि उनका उद्देश्य भारतका सैनिक अथवा आर्थिक शोषण नहीं होगा, बल्कि वे आन्तरिक व्यापारको बढ़ावा देनेके लिए प्रयुक्त की जायेंगी और तीसरे दर्जें के यात्रियोंके लिए यात्रा काफी आरामदेह हो जायेगी। तीसरे दर्जेंकी जनता जो किराया अदा करती है, उसके बदले में उसे कुछ मिलेगा। कोई भी यह आशा नहीं करता कि स्वराज्य में बीमारियाँ बिलकुल नहीं रहेंगी; इसलिए अस्पताल भी निश्चय ही रहेंगे। लेकिन यह आशा जरूर की जाती है कि अस्पताल तब भोग-विलासके कारण पीड़ित लोगों के लिए न होकर, संयोगवशात् पीड़ित लोगोंके लिए होंगे। चरखेके रूपमें मशीन भी निश्चितरूपसे होगी ही। वह भी आखिर एक नाजुक ढंगकी मशीन ही है। पर मुझे इसमें सन्देह नहीं कि स्वराज्य होनेपर भारतमें कितने ही कारखाने भी खड़े होंगे, लेकिन वे जनताकी भलाई के लिए खड़े होंगे, आजकी तरह उसका खून चूसनेके लिए नहीं। नौसेना की बात मैं नहीं जानता, पर मैं यह जानता हूँ कि भावी भारतकी सेना किराये के टट्टओंकी सेना नहीं होगी, जिसका प्रयोग भारतको गुलाम बनाये रखने और अन्य राष्ट्रोंको उनकी स्वतन्त्रतासे वंचित करनेके लिए किया जाता है। सेना बहुत कम कर दी जायेगी, उसमें ज्यादातर स्वयंसेवक होंगे और उसका प्रयोग भारतकी सुरक्षा और रखवाली के लिए किया जायेगा। स्वराज्यमें कानून और न्यायालय भी होंगे। पर वे लोगोंकी स्वतन्त्रताके संरक्षक होंगे, आजकी तरह ये ऐसी नौकरशाहीके हाथोंके औजार नहीं होंगे, जिसने समूचे राष्ट्रको नपुंसक बना दिया है और जो उसे और भी नपुसंक बनानेपर तुली हुई है। अन्तमें, जहाँ हर व्यक्तिको—अगर वह ऐसा चाहेगा