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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय
- मैं क्या सन्देश दूँ? पता नहीं मुझे क्यों रिहा कर दिया गया है। मेरे पिताजी, जो दमेके मरीज हैं, और मेरे सैकड़ों साथी अब भी जेलमें हैं। ऐसा महसूस करता हूँ कि मुझे बाहर आनेका कोई अधिकार नहीं था। मैं केवल यही कह सकता हूँ : लड़ाई जारी रखो, भारतकी आजादी के लिए काम करते रहो। आरामकी जरूरत नहीं है, और किसी झूठे समझौते के लिए अपने सिद्धान्तोंको छोड़ने की जरूरत नहीं है। अपने महान् नेता महात्मा गांधी के पीछे चलो और कांग्रेसके वफादार रहो। कुशल बनो, संगठित होकर काम करो, और सबसे बड़ी बात यह है कि चरखे और अहिंसाको मत भूलो।
उग्रपन्थी नहीं है
संयुक्त प्रान्त के प्रचार आयुक्त लखनऊसे लिखते हैं कि १५ फरवरीके अपने पत्रमें उन्होंने देहरादूनसे निकलनेवाले 'गढ़वाली' को असावधानीमें एक उग्र पन्थी पत्र कह दिया था। अब उन्होंने लिखा है कि वह दरअसल एक नरम विचारोंवाला पत्र है।
ओछा अत्याचार
ढाकाके बाबू विमलानन्द दासगुप्तको एक सार्वजनिक सभाके सिलसिले में, जो ढाकामें गत २३ जनवरीको हुई थी और जबरदस्ती तितर-बितर कर दी गई थी, गिरफ्तार कर लिया गया था। बादमें उनपर मुकदमा चलाया गया और उनके विरुद्ध कोई प्रमाण न मिलनेपर वे बरी कर दिये गये। परन्तु, अधिकारियोंके लिए यह पर्याप्त नहीं था। इसलिए अब उन्हें वकालत सम्बन्धी अधिनियम की धारा ४० के अधीन निम्नलिखित नोटिस मिला है :
- ढाकाके जिला मजिस्ट्रेटने मुझे यह रिपोर्ट दी है कि इस अदालतके एक वकोल बाबू विमलानन्द दासगुप्त, एम॰ ए॰, बी॰ एल॰, ने जुलाई १९२१ में अपनी वकालत स्थगित कर दी और वे तथाकथित ढाका नेशनल कालेजमें अर्थशास्त्र के प्रोफेसर नियुक्त हो गये। यह भी पता चला है कि उक्त विमलानन्द दासगुप्तने इस नौकरीके लिए उच्च न्यायालयकी अनुमति नहीं ली। जिला मजिस्ट्रेटकी रिपोर्टसे यह भी पता चलता है कि उक्त विमलानन्द दासगुप्त उस सभा में उपस्थित थे और उन्होंने उसमें भाग भी लिया था जो २९ जनवरी, १९२२को ढाकामें ढाकाके जिला मजिस्ट्रेट द्वारा दण्ड प्रक्रिया संहिताकी धारा १४४के अधीन जारी किये गये आदेशों के प्रतिकूल आयोजित की गई थी।
- आगे यह भी पता चलता है कि उक्त विमलानन्द दासगुप्तपर जब भारतीय दण्ड संहिता की धारा १८८के अधीन मुकदमा चला, तो उन्होंने अदालत में यह कहा कि ब्रिटिश सरकारके प्रति उनके मनमें कोई वफादारी नहीं है और जाँच करनेवाले मजिस्ट्रेटके पदके लिए उनके हृदयमें कोई सम्मान नहीं है। इससे यह मालूम होता है कि उक्त विमलानन्द दासगुप्तने इस तरह वकीलोंके लिए बनाये गये नियमोंका शोचनीय उल्लंघन किया है।