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टिप्पणियाँ
इसलिए इस नोटिस द्वारा उक्त विमलानन्द दासगुप्तको यह आदेश दिया जाता है कि वे ७ मार्चको या उससे पहले यह बतायें कि उच्च न्यायालयको यह रिपोर्ट क्यों न दे दी जाये कि वह उनका वकालत करनेका अधिकार समाप्त या स्थगित कर दे।

इस तरह जो तमाशा श्री शेरवानीके[१] साथ शुरू हुआ था, ढाकामें उसकी पुनरावृत्ति की जा रही है। लगता है इस नोटिसको जारी करनेवाला जज यह नहीं देख पाया कि कैफियत बिलकुल दूसरी है। जो लोग वकालत स्थगित कर चुके हैं, उनके स्वराज्य की प्राप्तिसे पहले अदालतोंमें लौटनेकी सम्भावना ही नहीं है। स्वराज्यकी प्राप्ति के बाद, साफ है कि ऐसे सभी वकील यदि चाहेंगे तो अपनी वकालत फिर शुरू कर देंगे। फिर इस नोटिसका सिवाय इसके और क्या नतीजा निकल सकता है कि अदालतकी स्थिति हास्यास्पद हो जाती है और जनसाधारणको अदालतोंके बहिष्कारके लिए एक और कारण मिल जाता है, क्योंकि अदालतोंके द्वारा वकीलोंको किसी ऐसे आचरण के लिए दण्ड नहीं दिया जा रहा है जो व्यावसायिक शिष्टाचारके प्रतिकूल हो, बल्कि इसलिए दिया जा रहा है कि वे अमुक ढंगके राजनीतिक विचार रखते हैं, विचार बहुत उग्र हैं या कट्टर यह एक अलग बात है। ('दण्ड' शब्दका प्रयोग मैंने इसलिए किया है कि नोटिस जारी करनेवाला जज अपने-आपको इस विश्वाससे भरमा रहा है। कि जो वकील अपनी वकालत स्थगित कर चुका है उसे वकालतके अधिकारसे वंचित करके वह उसे 'दण्ड' दे रहा है।) बाबू विमलानन्दपर तामील हुए इस नोटिसके फलस्वरूप यदि ढाकाके उनके बन्धु वकीलोंके रुखमें सख्ती आ जाती है और उनमेंसे कमसे कम कुछ अदालतोंको छोड़ देते हैं, चाहे वे ऐसा इस बातके विरोध में ही क्यों न करें कि अदालतोंको इस तरह राजनीतिक उत्पीड़नकी मशीनोंमें परिवर्तित किया जा रहा है, तो मुझे इससे तनिक भी आश्चर्य नहीं होगा।

आशीर्वाद

बड़ोदादा[२] (द्विजेन्द्रनाथ ठाकुर) ने मुझे एक छोटा-सा सुन्दर पत्र भेजा है, जिसमें नीचे लिखी पंक्तियाँ भी हैं :

पीड़ासे छटपटाती हुई हमारी इस धरतीपर मानव-जातिके लिए शान्ति और सद्भावका एक नया युग आरम्भ करनेकी भारत-माताको सन्तानोंकी हार्दिक प्रार्थनाओंको वहन करनेवाला जो विशाल जहाज आज बढ़ रहा है, उसकी तेज और धीमी गतिके सम्बन्धमें मेरे विचार इस प्रकार हैं :
  1. तसछुक अहमद खाँ शेरवानीने, जो राष्ट्रीय मुस्लिम विश्वविद्यालयके अध्यक्ष थे, वकालत छोड़ दी थी। अलीगढ़में उपद्रवोंके तुरन्त बाद वे गिरफ्तार किये गये थे और इलाहाबादके पास नैनी जेलमें रखे गये थे। देखिए खण्ड २२, पृष्ठ १३८-३९, ३७३।
  2. रवीन्द्रनाथ ठाकुरके बड़े भाई ये सिद्धान्त रूपमें गांधीजीकी असहयोग योजनाके बहुत बड़े प्रशंसक थे।