पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 23.pdf/८०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४६
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय



होशियार कप्तान जब अपने जहाजको किसी ऐसे स्थानपर पाता है जहाँ बहुत सारी खतरनाक चट्टानें हों, तो वह उसे सही दिशामें चलाते हुए उसकी गति धीमी कर देता है। पर जैसे ही वह खुले समुद्रमें पहुँचता है, जहाँ इस तरही रुकावटें बिलकुल नहीं होतीं, वह अपने जहाजकी गति तेज कर देता है। लेकिन बेवकूफ कप्तान, जहाँ समुद्रमें जलमग्न चट्टानें न हों वहाँ भी, चट्टानोंके भयसे अपने जहाजको एक गलत दिशामें मोड़ देता है। इस प्रकार वह एक अनजान क्षेत्रकी ओर बढ़ जाता है, जहाँ पानीके नीचे चट्टानें छिपी होती हैं। और जैसे ही उसका जहाज उनके पास पहुँचता है, वे उसे चकनाचूर कर देती हैं।
महात्मा गांधी अपने जहाजको पहली रीतिसे चला रहे हैं, जब कि उनके सलाहकार चाहते हैं कि वे दूसरी रीति अपनायें।

मुझे आशा है कि आन्दोलनके अन्तमें यह कहा जा सकेगा कि मैं एक "होशियार कप्तान" ही था। मैं यह बात सच्चाईके साथ कह सकता हूँ कि तूफानके जैसे थपेड़े मैं इस समय खा रहा हूँ वैसे मैंने जीवनमें कभी नहीं खाये। अभीतक मैंने अपनेआपको इस विश्वाससे भरमाये रखा कि यदि मेरी कुछ सीमाएँ हैं, तो साथ ही मुझमें काफी क्षमता भी है। परन्तु इस समय ऐसा लगता है कि जितने गहरे पानीमें मुझे नहीं उतरना चाहिए था मैं उससे अधिक गहरेमें पहुँच गया हूँ। इसलिए बड़ोदादा जैसे निर्मल और साधु पुरुषकी प्रार्थनाएँ और आशीषें इस समय मेरे लिए बहुत ही शुभ हैं।

यदि यह बात सच है तो भयानक है

एक सज्जनने, जिन्होंने अपना नाम मेरे सूचनार्थ लिख भेजा है, अपने पत्रपर "पंजाबका एक राष्ट्रवादी" इस रूपमें ही हस्ताक्षर किये हैं, लिखते हैं :

१६ तारीखके अपने अंकमें आपने लिखा है :
"सिखोंमें सचमुच गजबकी जागृति आ गई लगती है। अकाली दल न केवल प्रभावशाली अहिंसाका एक दल बन गया है, बल्कि वह एक सुन्दर आचार-संहिता भी तैयार कर रहा है। गुरुद्वारा कमेटी अब एक गैर-सिख पण्डित दीनानाथ की रिहाईपर जोर दे रही है, और जो चाबियोंवाले मामलेके[१] सिलसिले में गिरफ्तार किये गये हैं।'
ऐसा लगता है कि आपको तथ्य मालूम नहीं है, नहीं तो आप युद्धप्रिय अकाली दलको "प्रभावशाली अहिंसा" का दल बताते हुए शायद कुछ हिचकते। होशियारपुर जिलेमें अकाली जत्थोंके उद्दण्ड और उपद्रवी व्यवहारके कारण वहाँ फौजका एक दस्ता भेजना पड़ा है। अभी उस दिन होशियारपुरसे दो
  1. देखिए खण्ड २२, पृष्ठ ४३७।