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मीलकी दूरीपर बिलासपुरमें एक सभा हुई थी, जिसमें कोई २,००० अकाली मौजूद थे। जिस जगह वक्ता बैठे हुए थे, उसके चारों ओर लोग कतारें बाँधे खड़े थे और सबके हाथोंमें नंगी तलवारें थीं। वक्ताओंने बहादुरीके साथ यह घोषणा की कि आज कोई सरकार नहीं है; एक भविष्यवाणीके अनुसार काबुल से एक अकाली आयेगा और वह तमाम विरोधी शक्तियोंको परास्त कर दिल्लीके सिंहासन पर बैठेगा; और हम इशारा पाते ही क्रान्तिकारी कार्यवाहियाँ शुरू कर देने को बिलकुल तैयार हैं। होशियारपुरमें अकालियोंका अपना एक फौजी रसद विभाग और खुफिया विभाग है। इर्दगिर्द की खबर रखनेके लिए उनके पास साँड़नी-सवार हैं। गौरीशंकरमें जब कुछ राजनीतिक कैदियोंपर मुकदमा चल रहा था, अदालत के बाहर एक भारी भीड़ जमा हो गई और दर्पपूर्ण भावसे मजिस्ट्रेटसे कहा कि कैदियोंको हमारे हवाले कर दिया जाये।
अकालियोंकी शपथमें से अहिंसाकी प्रतिज्ञा अब हटा दी गई है; और वे सेवाका जो व्रत लेते हैं वह केवल गुरुद्वारा सुधारतक सीमित नहीं है। हर रोज सभाएँ होती हैं, और मौजूदा सरकारकी जगह सिख-शासन स्थापित करनेकी बात खुल्लमखुल्ला कही जाती है। लुधियानेसे खबरें मिली हैं कि जोशीले सिखोंके जत्थे तलवार, कुठार और हथौड़े लिये, बड़े ठाठसे परेड करते हुए, अपने 'दीवानों' में जाते हैं। वे बाकायदा जत्थे बनाकर बाजारोंमें से गुजरते हैं, और जब कभी भारी संख्या में रेलसे सफर करते हैं तो टिकट नहीं खरीदते। कभी-कभी वे यहाँतक दावा करते हैं कि उन्हें मुफ्त सफर करनेका अधिकार है, क्योंकि वे मूर्खतापूर्वक यह मानते हैं कि देश उनका है। समनाला में अकाली वक्ताओंने यह घोषणा की "बादशाह जॉर्ज पंचम हमारा बादशाह नहीं है। सरदार खड़क सिंह हमारा बेताजका बादशाह है।" २३वें पायनियर्स दलके कुछ आदमियोंने, जो कसूर तहसीलमें अपनी छुट्टियाँ बिताकर लौटे हैं, शिकायत की है कि अकालियोंने उन्हें धमकी दी है कि यदि उन्होंने फौरन फौजकी नौकरी नहीं छोड़ दी और वे खालसा सेनामें शामिल नहीं हुए तो उनकी औरतोंके साथ बुरा व्यवहार किया जायेगा। संक्षेपमें, ये कुछ ऐसे भयानक तथ्य हैं जिनसे आपका यह विचार बदल जाना चाहिए कि पंजाबके केन्द्रीय जिलोंके सिखोंमें जो जागृति आई है, वह अहिंसात्मक है।

इस पत्रने मुझे चौंका दिया है। इस रिपोर्टपर सहसा विश्वास नहीं होता। परन्तु चूंकि पत्रलेखकका दावा है कि यह विवरण बिलकुल सही है, और चूँकि मैं सिखोंकी अहिंसाकी भूरि-भूरि प्रशंसा कर चुका हूँ, इसलिए इस रिपोर्टको प्रकाशित करते हुए भी मुझे झिझक महसूस नहीं हुई। तथापि मैं इसपर तबतक अपनी राय प्रकट नहीं कर सकता जबतक कि उन सिख मित्रोंसे, जिन्हें मैं इस विषयमें लिख चुका हूँ, पूरी बातका पता न चल जाये।