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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

 

छानबीनके योग्य एक मामला

अकालियोंके विरुद्ध "पंजाबके एक राष्ट्रवादी" के आरोपोंकी चर्चाके बाद जो पत्र मेरे सामने आया वह फेनी, जिला नोआखली के एक प्रसिद्ध नागरिकके पाससे आया है। उन्होंने अपना नाम और पूरा पता दिया है, और मुझसे अपना नाम प्रकाशित न करनेके लिए भी नहीं कहा है। लेकिन मैं जान-बूझकर उनका नाम नहीं दे रहा हूँ। क्योंकि यदि उनके पत्र में बताये गये तथ्य सही हैं, तो सम्भव है कि सच्ची बात कहनेका साहस दिखाने के कारण उनके साथ दुर्व्यवहार किया जाये। १६ फरवरीको भेजा गया उनका पत्र इस प्रकार है :

मैं आपका ध्यान नोआखली जिलेके फेनी सब-डिवीजनकी आजकी स्थितिकी ओर खींचना चाहता हूँ। यद्यपि में असहयोगी नहीं हूँ, पर आपके लिए मेरे हृदय में सम्मान है। आपका यह आन्दोलन अहिंसात्मक घोषित किया गया है। परन्तु आपके अनुयायियोंकी हिंसा सहनशीलताको सीमासे बहुत आगे बढ़ गई है। उनमें न तो शान्ति और व्यवस्था है और न बड़ोंके लिए कोई आदर! गाँवोंके बदमाशोंको अपना धन्धा जारी रखनेका एक सुनहरी मौका मिल गया है और वे स्वयंसेवक दलों में शामिल हो गये हैं। उन्हें रोकनेवाला कोई नहीं है। देश इस समय इन लोगों की मुट्ठीमें है। हरएक हाटवाले दिन बेचारे माल बेचनेवालों और दुकानदारोंसे रुपया ऐंठा जाता है। जबकि गरीब दो वक्तका भोजन भी मुश्किलसे जुटा पाते हैं, उन्हें हर रोज सुबह और शाम एक-एक मुट्ठी चावल देना पड़ता है, नहीं तो उन्हें सताया जाता है। जो अभागे, असहयोगी नहीं हैं वे सामाजिक बहिष्कारके शिकार हो रहे हैं, उनपर मैला फेंका जाता है, उनके घर जला दिये जाते हैं, उन्हें धमकी दी जाती है, उनपर हमले होते हैं, पत्थर फेंके जाते हैं और इसी तरह की दूसरी बातें होती हैं। वे जबान नहीं खोल पाते। आपके सूचनार्थ में नीचे इस हिंसाके कुछ उदाहरण दे रहा हूँ :
  1. हाईकोर्टके वकील मौलवी नूरुल हक, श्री अली हैदर चौधरी और बाबू यशदाकुमार घोषपर मैला फेंका गया, क्योंकि वे कौंसिलके लिए उम्मीदवार थे।
  2. मुंशी मुहम्मद वासिल और दीवानी अदालत के क्लर्क मुंशी रियाजुद्दीन अहमदपर बाजार में बेरहमी से हमला कर दिया गया और उनकी बेइज्जती की गई, क्योंकि उन्होंने अपनी टोपियाँ स्वयंसेवकोंको देनेसे इनकार कर दिया था।
  3. बाजार रियाजुद्दीन मुंशी, बाजार पीर बक्श मुंशी, बाजार दारोगा मोहम्मद आमा और अन्य बहुतसे बाजार जबरदस्ती बन्द कर दिये गये और खरीदारों व बेचनेवालोंको बाजारमें इकट्ठा नहीं होने दिया गया, क्योंकि इन बाजारोंके मालिक असहयोगी नहीं है।