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४. स्थानीय सब-डिवीजनल आफिसर तथा अन्य प्रमुख व्यक्तियोंके साथ छेड़छाड़ की गई और कई जगह उनको मोटरें जबरदस्ती रोक ली गई; कई जगह उनपर पत्थर और धूल फेंकी गई।
५. गाँवके एक शरीफ आदमोके घरमें आग लगा दी गई और उसे दूसरे तरीकोंसे धमकी दी गई, क्योंकि जब एस॰ डी॰ ओ॰ की मोटर जबरदस्ती रोक ली गई थी तो उसने उनको व उनके साथीकी मदद की थी।
६. खान साहबके घरको जलानेको बार-बार कोशिश की गई और आखिर उनका घर जलाकर खाक कर दिया गया, और उसके बाद मजदूरोंको धमकी देकर उनके यहाँ काम करने और फिरसे मकान बनानेसे रोका गया।
७. सहयोगियोंको गुमनाम पत्रों और पोस्टरों द्वारा और लोगोंको उनके खिलाफ खुल्लमखुल्ला भड़काकर आतंकित किया जाता है।
८. खान साहबको बाँसके पुलपर से नहर पार नहीं करने दी गई और उनका सबके सामने अपमान किया गया। और भी अनेक उदाहरण हैं। ये बिलकुल सच्ची घटनाएँ हैं और मेरी यह चुनौती है कि कोई भी इन तथ्योंको गलत सिद्ध करके दिखाये। कांग्रेस और खिलाफतके स्थानीय कार्यकर्त्ता इस सिलसिले में कोई कदम नहीं उठाते, बल्कि वे इसमें उलटा गर्व अनुभव करते हैं, क्योंकि उन्होंने तो मनमानी करनेका ठेका ले रखा है। मानवताके नामपर मेरी आपसे यह अपील है कि कृपया इसकी जांच कराइए। मुझे पूरा विश्वास है कि आप इस स्थितिको बेरोकटोक नहीं चलने देंगे और जो लोग आपके मतके अनुयायी नहीं हैं, उन्हें भी जिन्दा रहने देंगे।

मैंने इस पत्रके अनावश्यक लगनेके कारण केवल एक या दो ही अंश छोड़े हैं। अभीतक मेरे पास जब-तब असहयोगियोंके खिलाफ शिकायतें आती रही हैं और मैंने उनमें लगाये गये आरोपोंकी सच्चाई जाननेके लिए उन्हें प्रकाशित करने या उनके विषयमें अन्य कार्रवाई करने में संकोच नहीं किया है। प्रायः ये आरोप अतिरंजित और कभी-कभी अनुचित भी सिद्ध हुए हैं। परन्तु यह काफी आश्चर्यकी बात है कि मेरे पास अब ऐसे निश्चित आरोप आ रहे हैं जिनका भेजनेवाला उन्हें सिद्ध करनेको भी तैयार है। दुर्भाग्यवश मुझे हफ्ता-दर-हफ्ता "इन कोल्ड ब्लड़" (नृशंस घटनाएँ)[१] शीर्षकसे बंगाल, असम, संयुक्त प्रान्त, पंजाब, आन्ध्र और अन्यत्र हो रहे भीषण दमनके किस्से छापने पड़े हैं। इनमें से किसी-न-किसी स्थानसे सुनियोजित दमनकी खबरें बराबर मिलती रहती हैं। परन्तु मैं अपने-आपको इस विश्वाससे भरमाता रहा हूँ कि कुल मिलाकर असहयोगियोंका आचरण निर्दोष रहा है। इसलिए नोआखलीकी इस खबरसे मुझे गहरा धक्का लगा है। मैं जानता हूँ लोग इसका प्रतिवाद करेंगे किन्तु पत्रमें इतना तथ्यपूर्ण ब्योरा दिया गया है कि ये आरोप साररूपमें सम्भवतः सही निकलेंगे। पत्रलेखकने जाँचकी माँग की है। काश कि मेरे पास ऐसा करनेके लिए समय और

  1. ये यंग इंडिया के जनवरी-फरवरी १९२० के अंकोंमें प्रकाशित हुए थे।

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