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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

करेंगे। मैं चाहता हूँ कि जहाँतक सत्य और अहिंसाका सम्बन्ध है, असहयोगीको इस योग्य बनना चाहिए कि उसकी ओर कोई अँगुली न उठा सके। इस संघर्षकी सफलता एकमात्र नैतिक प्रतिष्ठाके अर्जनपर ही निर्भर है, और वह केवल तभी हो सकती है। जब सभी तरह की परिस्थितियोंमें पूरी तरह सतर्कताके साथ ईमानदारी बरती जाये। बिना शर्त माफीकी बातसे श्री शिव जो लाभ उठाना चाहते हैं, उसे उठाने के बजाय वस्तुतः उन्हें यह चाहिए कि वे, कमसे कम इस कार्यमें, सरकारकी इस उदारताको स्वीकार करें कि उसने माफीनामेका उल्लेख करके उनको जलील नहीं किया है। इस दुःखद प्रकरणको समाप्त करनेसे पहले मुझे श्री सुब्रह्मण्य शिवसे यह निवेदन करना ही होगा कि वे अब भी इस आशयकी एक खुली घोषणा कर दें कि वे राजनीतिमें कतई भाग नहीं लेंगे, साथ ही दिये हुए वचनके भंगके लिए क्षमा भी माँग लेंगे। मुझे यकीन है कि उनके अपने वचनपर कड़ाईसे जमे रहने से उन्हें या जनताको कोई हानि नहीं होगी। उनके लिए सामाजिक और आर्थिक कार्यका व्यापक क्षेत्र खुला हुआ है। खद्दरके विशुद्ध आर्थिक और नैतिक पहलुओंको लेकर वे उसका बहुत-कुछ कार्य कर सकते हैं

पत्नीकी बधाई

लायलपुरके श्री अब्दुर्रहमान गाजीने, जब उनपर मुकदमा चल रहा था, निम्नलिखित पत्र लिखा था :

स्वराज्य-मन्दिर में पहुँचकर निश्चिन्तताके साथ बैठ जानेसे पहले, मैं अपने एक दोस्तके पास आप तक पहुँचा देनेके लिए ये कुछ पंक्तियाँ छोड़े जा रहा हूँ। यह मुकदमा, जैसा कि आम तौरपर होता है, एक भारी ढकोसला है। मुझपर धारा १०८ लगाई गई है। सबके सब गवाह ऐसे ही लोग हैं, जिनका कुछ-नकुछ अपना स्वार्थ है। मौजूदा सरकारका पूर्णतया नैतिक पतन हो चुका है, यह बात इस मुकदमेसे मेरे आगे बिलकुल साफ हो गई है। इस मुकदमेके सम्बन्ध में अखबारोंको भेजे गये तार रोक दिये हैं। मेरी पत्नी इस मुकदमेके बारेमें क्या लिखती है, आपको जानकर खुशी होगी :
"अपनी गिरफ्तारीपर मेरी बधाई कबूल कीजिए। खुदाका शुक्र है कि जिस दिनका एक मुद्दतसे इन्तजार था वह आ गया और खुदाने आपकी कुर्बानी मंजूर कर ली। हम सब बहुत खुश हैं। खुदा करे कि आप अपने मुल्क और मजहबके लिए खुशीसे तकलीफें सह सकें। खुदा हमें अपने मकसदके लिए मुसीबतें सह सकनेकी ताकत दे।
मैं आशा करता हूँ कि अब मेरी रिहाई राष्ट्रीय संसदके आदेशोंसे होगी।

यह पत्र २६ जनवरीको लिखा गया था। ४ मार्चको इसे पढ़ते हुए दिलको कुछ ठेस-सी लगती है, क्योंकि राष्ट्रीय संसद अब उतनी निकट नजर नहीं आ रही जितनी निकट वह, निःसन्देह, २६ जनवरीको आ रही थी। लेकिन एक सिपाही के लिए यह बात महत्त्वपूर्ण नहीं है कि लड़ाईमें जीत कब होती है। उसके लिए तो