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केवल अपने मोर्चेंपर जमें रहना महत्त्वपूर्ण है। शानदार रिहाई तो मैं उसे मानता हूँ जो स्वराज्य संसद आते ही अधिनियम बनाकर करेगी या फिर जो रिहाई समय पाकर अपने आप होगी। और निःसन्देह, मैंने अभी यह आशा नहीं छोड़ी है कि यदि बारडोलीका संशोधित रचनात्मक कार्यक्रम सफलतापूर्वक पूरा किया जा सका तो कैदियोंको राष्ट्रकी शक्तिसे रिहा कराया जा सकेगा।

कलकत्ता अभी तैयार नहीं है

कलकत्तासे एक सज्जन अपन पत्रमें लिखते हैं :

मेरा मन मुझे यह कहनेको बाध्य करता है कि बंगाल, पड़ोसी-प्रान्त बिहारकी तुलना में, स्वदेशीके लिए कुछ नहीं कर रहा है। वह अभी बहुत पीछे है। जो स्वयंसेवक होनेका दम भरते हैं वे भी खद्दर नहीं पहनते। मैं इस महानगरके प्रायः सभी प्रमुख भागोंमें घूमा हूँ, पर मुझे एक भी आदमी ऐसा नहीं मिला जो खद्दर पहने हो। दूसरी ओर बिहारमें शायद ही कोई आदमी ऐसा मिलेगा जो विलायती कपड़े पहने हो। गाँवोंमें अभी लोगोंने खद्दरकी धोतियाँ पहननी शुरू नहीं की हैं। पर मिलकी धोतियोंकी जगह खद्दरकी धोतियाँ चालू करनेकी कोशिशें हो रही हैं।

मैंने पत्रके केवल कुछ अंश ही उद्धृत किये हैं। आगे वे कहते हैं कि यदि कलकत्ते जैसी ही दशा बंगालके गाँवों में भी है, तो सत्याग्रहकी लड़ाई जीतना सम्भव नहीं है। इसका समर्थन अन्य कई पत्रोंसे भी होता है। पर मैं यह माननेको तैयार नहीं हूँ कि खुद कलकत्ते में भी खद्दरके आन्दोलनमें कोई प्रगति नहीं हुई है। साथ ही मुझे लगता है कि कलकत्तेके विरुद्ध यह आरोप अधिकांशतः सच है। खद्दरका पहनावा कलकत्ते में आम बात नहीं बल्कि एक अपवाद है; और इस तथ्यसे इनकार नहीं किया जा सकता कि पूर्ण सत्याग्रह तबतक असम्भव है जबतक कि उसकी पूर्ववर्ती शर्तें पूरी तरह अमलमें न लाई जायें। यदि हमें शान्तिपूर्ण स्वराज्यकी स्थापना करनी है—और शान्तिपूर्ण उपायोंसे प्राप्त स्वराज्य शान्तिपूर्ण ही होगा—तो हमें निर्माण के लिए उतना ही तैयार रहना चाहिए जितना कि हम विनाशके लिए तैयार लगते हैं। यदि संक्रान्ति कालमें हमें गड़बड़, अराजकता और गृह कलहसे बचना है, तो बहिष्कार के साथ-साथ निर्माण भी चलते रहना चाहिए। हटाई गई चीजोंकी जगह दूसरी चीजें लाते जाना चाहिए और एक ओर अवज्ञा तो दूसरी ओर अनुशासन भी चाहिए। निर्माणका सबसे बड़ा अंग खद्दर-आन्दोलन है। यदि इस संघर्षको अन्त तक अहिंसात्मक रखना है, तो हम उसकी उपेक्षा करनेकी हिम्मत नहीं कर सकते।

एक दिलचस्प सूचना

सर्वश्री प्रकाशम्, नागेश्वरराव और नारायणरावने गुण्टूर जिला कांग्रेस कमेटी द्वारा चुने गये इलाकोंकी सामूहिक सविनय अवज्ञाकी तैयारीके बारेमें जो रिपोर्ट जारी की थी, यद्यपि वह अब पुरानी पड़ गई है, पर फिर भी पढ़नेमें दिलचस्प है। आयुक्तोंने इलाके के दो भाग किये हैं : पेड्डानन्दीपाडु फिरका और उसके आसपासके