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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

तमाम गाँवोंकी एक संलग्न इकाई बनती है, और दूसरे भागमें पालनाड, विनुकोंडा और सेट्टनपल्लीके बाकीके फिरके तथा ओंगोल, नरसारावपेट, तेन्नाली और रिप्पलीके भाग आते हैं। उनकी यह राय है कि चुने गये इलाकेका दूसरा भाग खद्दर सम्बन्धी शर्तोंको तो सर्वथा पूरा करता है, पर अस्पृश्यता सम्बन्धी शर्तोंको नहीं करता, यद्यपि लोगोंकी मनोवृत्तिमें बहुत सुधार हुआ है। अहिंसा के बारेमें उन्होंने जहाँतक यह माना है कि लोग स्वभावसे अहिंसात्मक हैं, वहाँ उनका कहना है कि "फिर भी हमें इसमें सन्देह है कि घोरतम उत्तेजना और अपमानकी परिस्थितिमें वे अडिग रह सकेंगे या नहीं।" वे इस निष्कर्षपर पहुँचे हैं कि हिन्दू-मुसलमान एकताकी शर्त अधिकतर पूरी कर ली गई है।

इलाकेके पहले भागके बारेमें तो उक्त तीनों सज्जन बहुत ही ज्यादा उत्साही हैं। उनका अन्दाजा है कि स्वयंसेवकों की कुल संख्या लगभग ४,००० है।

वे खद्दरकी वर्दी पहनते हैं और बैज लगाते हैं। सभी उम्र के आदमी भरती हुए हैं। हमें ६० और ६५ सालतक के सक्रिय कार्यकर्त्ता मिले हैं। कुछ गाँवोंमें पंचम स्वयंसेवक डटकर काम कर रहे हैं और वे दूसरे लोगोंके साथ आजादीसे उठते-बैठते हैं। संगठनकी सबसे बड़ी खूबी यह है कि वे अपने कर्त्तव्यमें पूरी निष्ठासे जुटे हुए हैं और अहिंसाको अपने धर्मका अंग मानकर उसका पालन कर रहे हैं।

खद्दरके विषय में उनकी राय यह है :

अधिकतर गाँव आत्मनिर्भर हैं। कुछ गाँवोंमें लगभग हर घरमें एक या एकसे अधिक चरखे चल रहे हैं। हर गाँवमें जो सूत कतता है, उसे आम तौरपर गाँवके पंचम लोग बुनते हैं। कट्टर ब्राह्मणतक अपने कपड़े पंचम भाइयोंसे बुनवा रहे हैं। ज्यादातर गाँवोंमें ५० प्रतिशत से अधिक लोग खुद अपना तैयार किया हुआ खद्दर पहनते हैं। कुछ गाँवों में तो ऐसे लोगोंका अनुपात ९५ प्रतिशत तक है।

अस्पृश्यता के बारेमें उनका कहना है :

हमें यह देखकर आश्चर्य हुआ कि इस इलाकेके कुछ गाँवोंने अस्पृश्यताको मिटानेकी दिशामें इतने थोड़े समयमें ही असाधारण प्रगति कर ली है। अपने इन देशवासियोंके विचारोंमें इस तरहकी क्रान्ति लाना सम्भव है, इसका हमें यकीन नहीं होता था। हमने देखा कि तथाकथित अछूत पंचायत बोर्डमें लिये गये हैं। कुछ स्थानोंपर कट्टर ब्राह्मणोंने पंचमोंको हाथसे पकड़कर खुद अपने बीच बैठाया और कहीं-कहीं वे ब्राह्मणोंके घरोंमें वही सब काम कर रहे हैं जो कि अन्य जातियोंके लोग करते आये हैं। एक धनी ब्राह्मण सज्जन ने हमें बताया कि वे और आसपासके गाँवोंके उनके कुछ मित्र अपनी सारी आमदनी अपने जरूरतमन्द पंचम भाइयोंके लिए खर्च करेंगे।