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यदि मैं पकड़ लिया गया


अंग्रेज लोग जन्मजात योद्धा हैं; इसलिए जब वे सविनय अवज्ञाके खिलाफ इस तरह आवाज उठाते हैं मानो वह कोई जघन्य अपराध है और उसपर कड़ेसे कड़ा दण्ड दिया जाना चाहिए, तब मुझे उनकी नेकनीयतीपर सन्देह होने लगता है। वे सशस्त्र विद्रोहका गुणगान करते रहे हैं और उन्होंने अवसर आनेपर उसका सहारा भी लिया है, तब फिर सविनय प्रतिरोधके विचार मात्र से उनमें से बहुतेरे लोग आपसे बाहर क्यों हो जाते हैं? उनकी यह बात तो समझमें आती है कि भारत में अहिंसामय वातावरण पैदा होना असम्भव-सा है। मैं इसे मानता तो नहीं हूँ, पर मैं ऐसे एतराजकी कद्र जरूर कर सकता हूँ। फिर भी जो बात मेरी समझमें नहीं आती वह यह है कि सविनय अवज्ञाके सिद्धान्तके ही खिलाफ वे इस तरह मोर्चा लेनेपर तुल गये हैं मानो वह कोई अनैतिक बात हो। मुझसे यह आशा करना कि मैं सविनय अवज्ञाका प्रचार करना छोड़ दूँ, मुझसे यह कहने के समान है कि मैं शान्तिका प्रचार करना छोड़ दूँ अर्थात् आत्महत्या कर लूँ।

और अब सुन रहा हूँ कि सरकार मेरे 'यंग इंडिया', 'नवजीवन' और 'हिन्दी नवजीवन—इन तीनों साप्ताहिकोंको खत्म कर देनेकी घातमें है। मैं आशा करता हूँ कि यह अफवाह झूठ निकलेगी। मैं दावेके साथ कहता हूँ कि मेरे इन तीन पत्रोंने लगातार सिवा शान्ति और सद्भावनाके अन्य किसी बातका प्रचार नहीं किया। इस बातका अत्यधिक खयाल रखा जाता है कि सिवा सत्यके, जैसा कि मैं उसको समझ पाता हूँ, दूसरी कोई बात पाठकोंतक न पहुँचाई जाये। जब कभी कोई गलत बात असावधानीसे छप जाती है तो वह फौरन मान ली जाती है और उसमें सुधार कर दिया जाता है। तीनों पत्रोंकी ग्राहक संख्या प्रतिदिन बढ़ रही है। उनके संचालक स्वेच्छासे काम कर रहे हैं; कुछ लोग तो बिलकुल वेतन नहीं लेते और कुछ केवल अपने गुजारे लायक पैसा ले लेते हैं। जो कुछ मुनाफा होता है वह पाठकोंको किसी-न-किसी रूपमें लौटा दिया जाता है, या किसी-न-किसी सार्वजनिक रचनात्मक कार्यमें लगा दिया जाता है। मैं ऐसा नहीं कह सकता कि यदि ये तीनों पत्र बन्द हो गये तो मेरे हृदयको व्यथा न होगी। सरकारके लिए तो उनको समाप्त कर देना बायें हाथका खेल है। इनके प्रकाशक और मुद्रक सभी परस्पर मित्र और साथी हैं। हमने आपस में यह तय कर रखा है कि जिस घड़ी सरकार जमानत माँगे उसी घड़ी ये पत्र बन्द कर दिये जायें। मैं उन्हें इसी धारणापर चला रहा हूँ कि सरकार मेरे कार्योंको चाहे किसी दृष्टिसे देखती हो पर वह कमसे कम मुझे इस बातका श्रेय तो अवश्य देगी कि इन पत्रोंके द्वारा मैंने अपनी समझ के अनुसार शुद्धसे-शुद्ध अहिंसा और सत्यका ही प्रचार किया है।

इतना होनेपर भी मैं आशा करता हूँ कि चाहे सरकार मुझे गिरफ्तार कर ले या चाहे वह मेरे इन प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष साधनों—तीनों पत्रों को—बन्द कर दे, लोग इससे विचलित न होंगे। सरकारका इस डरसे मुझे गिरफ्तार न करना कि इससे सारे देशमें हिंसक कृत्य होने लग जायेंगे, और उस अवस्थामें भीषण हत्याकाण्ड अवश्य मचेगा, मेरे लिए न तो अभिमानकी बात है, न खुशीकी; बल्कि यह तो लज्जाका विषय है। यदि मेरा कैद हो जाना सर्वव्यापी उपद्रवोंके लिए संकेत बन