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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जाये तो मेरे अहिंसाके उपदेश निन्दनीय ठहरेंगे और कांग्रेस तथा खिलाफतने अहिंसाकी जो प्रतिज्ञा ली है, उसकी हँसी उड़ जायेगी। निश्चय ही यह इस बातका प्रमाण होगा कि भारत शान्तिपूर्ण विद्रोहके लिए तैयार नहीं है। वह नौकरशाहीकी विजयका दिन होगा और इस बातका लगभग अकाट्य प्रमाण होगा कि नरम दलवाले मित्रोंकी ही बात ठीक है, अर्थात् अहिंसात्मक अवज्ञाके लिए भारत कभी तैयार नहीं किया जा सकता। इसलिए मैं आशा करता हूँ कि कांग्रेस तथा खिलाफतके कार्यकर्त्तागण यह स्पष्ट करनेमें कोई कसर न छोड़ेंगे कि सरकार तथा उसके सहायकोंके दिलमें जो डर बैठा हुआ है वह बिलकुल बेबुनियाद है। मैं विश्वास दिलाता हूँ कि इस आत्मसंयमके द्वारा हम अपने त्रिविध लक्ष्यकी ओर कोसों आगे बढ़ जायेंगे।

अतएव मेरे पकड़े जानेपर न तो हड़तालें हों, न जुलूस निकाले जायें न शोरगुलवाले प्रदर्शन किये जायें। उस अवस्थामें देशवासियोंके द्वारा पूर्ण शान्ति धारण किये रहनेको मैं अपनी बड़ी से बड़ी इज्जत समझूँगा। मैं देखना तो यह चाहता हूँ कि कांग्रेसका रचनात्मक कार्य घड़ीकी तरह नियमित तथा पंजाब एक्सप्रेसकी गतिसे चलता रहे। और मैं यह भी देखनेके लिए उत्सुक हूँ कि जो लोग आजतक पीछे थे वे अब आगे बढ़ रहे हैं और स्वेच्छासे अपने सारे विदेशी कपड़े त्यागकर उनकी होलियाँ जला रहे हैं। ज्यों ही उन्होंने बारडोलीमें निश्चित किये गये सम्पूर्ण रचनात्मक कार्यक्रमको पूरा उतारा त्यों ही में तथा दूसरे कैदी-भाई जेलके बाहर दीख पड़ेंगे। इतना ही नहीं देश स्वराज्यका महोत्सव मनायेगा और खिलाफत तथा पंजाबके अन्यायोंका भी प्रतिकार हो जायेगा। वे स्वराज्यके इन चार स्तम्भोंको न भूलें—अहिंसा, हिन्दू-मुसलमान-सिख-पारसी-ईसाई-यहूदी एकता, छुआछूतका पूर्ण त्याग और इस प्रमाणमें हाथकती तथा हाथबुनी खादी तैयार करना कि विदेशी कपड़ेका पूर्ण बहिष्कार हो सके।

ऐसा भी नहीं कहा जा सकता कि लोगोंके बीचसे मुझे हटा लिये जाने के फलस्वरूप लोगोंको लाभ न होगा। इससे एक तो लोगोंका यह अन्धविश्वास आमूल नष्ट हो जायेगा कि मुझमें कोई दैवी शक्ति है; दूसरे यह धारणा निराधार सिद्ध हो जायेगी कि लोगोंने असहयोगके कार्यक्रमको महज मेरे प्रभावमें आकर मंजूर किया है, उन्हें खुद इसमें विश्वास नहीं है। तीसरे वर्त्तमान कार्यक्रमके प्रणेताके गिरफ्तार हो जानेपर भी अपने कार्योंको योग्यतापूर्वक चलाकर वे यह सिद्ध कर देंगे कि हममें स्वराज्यकी क्षमता है। चौथे, अपने स्वार्थकी दृष्टिसे भी मेरे शरीरको आराम और चित्तको शान्ति मिलेगी, जो शायद मुझे अब मिलनी भी चाहिए।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, ९–३–१९२२