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पत्र: महादेव देसाईको


सुनिश्चित गतिसे निरन्तर क्रियाशील बनी रहती हैं। मेरे लेखे किसी सर्वोच्च और अदृश्य शक्तिमें जीवन्त आस्थाका ही नाम धर्म है। वह शक्ति सदा हमारी बुद्धिसे परे रही और आगे भी रहनेवाली है। बुद्धने हमको यही शिक्षा दी कि आकार या रूपको महत्व न दो और सत्य तथा प्रेमकी अन्तिम विजयपर भरोसा रखो। संसार और हिन्दू धर्मको यही उनकी अनुपम देन थी। उन्होंने हमको यह भी सिखाया कि इस मार्गपर चला कैसे जाये; क्योंकि वे अपनी शिक्षापर स्वयं भी चलते थे। प्रचारका सबसे अच्छा साधन पर्चेबाजी नहीं, बल्कि स्वयं भी अपना जीवन उसी तरहका बनाना है जिस तरहका जीवन हम चाहते है कि संसार अपनाये।

अंग्रेजी मसविदे (एस० एन० ८८१३) तथा (सी० डब्ल्यू० ५१७६) की फोटो-नकलसे।

४४. पत्र: महादेव देसाईको

[१९ मई, १९२४]

तुमने जो पत्र लिखा है वह श्री हाइड नहीं, शेखचिल्लीकी तरह लिखा है। डाक्टर जेकिलको भी हवाई महल बनानेका अधिकार है। फिर जब वे आश्रम रूपी महलमें रहने लगें तब तो पूछना ही क्या है? मुझसे पृथक रहनेकी इच्छामें ही दोष है। कुछ भी हो; क्या मैं ऐसा मूर्ख बनिया हूँ जो अपना बेशकीमती माल कौड़ियोंके मोल बेच दूँ――तुमको एक बहुत ऊँचे वेतनपर नौकर रखवा दूँ, और फिर तुमसे आश्रमके लिए धन लूँ? यह नहीं होगा। इतनी रकम तो तुम भीख माँगकर भी ला सकते हो। मुझे तो आश्रमको भीख या शरीर-श्रम द्वारा अर्जित धनसे ही चलाना है। मुझे यों तो बहुत-सी बातें कहनी है; परन्तु तुम इस थोड़े लिखेको ही बहुत जान लेना। संयमी पुरुषका शरीर नीरोग रहना ही चाहिए। शरीर-बलकी शिक्षा और आत्मबलकी शिक्षामें विरोध है पर आरोग्य और आत्मबलके बीच सीधा सम्बन्ध है।

बापूके आशीर्वाद

चि० महादेव देसाई

सत्याग्रह आश्रम

साबरमती

मूल गुजराती पत्र (एस० एन० ८७८५) की फोटोनकलसे।

१. डाकखानेको मुहरके अनुसार।