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भेंट: वाइकोम शिष्टमण्डलसे

तुम सबको मेरा प्यार,

तुम्हारा भाई,
मो० क० गांधी


कुमारी एडा वेस्ट
२३, जॉर्ज स्ट्रीट
साउथ लिंकन शायर

अंग्रेजी पत्र (जी० एन० ७६१८)तथा (सी० डब्ल्यू० ४४३३) की फोटो-नकलसे।

सौजन्य : ए० एच० वेस्ट

५०. भेंट: वाइकोम शिष्टमण्डलसे

[२० मई, १९२४)]

प्र०: महात्माजी, आपने कहा है कि उपवास एक ऐसा अस्त्र है जिसका प्रयोग अपने मित्रों के अलावा अन्य किसीपर नहीं किया जा सकता। त्रावणकोर सरकार या तो मित्र है या वह प्रजाकी इच्छाका विरोध करते रहनेके कारण उसकी शत्रु है। यदि वह मित्र है, तो निश्चित है कि सत्याग्रहियों द्वारा किया जानेवाला कष्टसहन जो इस विषयमें उनकी भावनाओंकी तीव्रताका द्योतक है, अवश्य ही अन्तमें सरकारका हृदय पिघलाने और उसे सत्याग्रहियोंकी माँगें स्वीकार करनेपर राजी करेगा। त्रावणकोरके महाराजा भीतरसे बाहरतक कट्टर हिन्दू होते हुए भी एक रहमदिल शासक हैं और अपनी प्रजाको प्यार करते है और वे सत्याग्नहियों द्वारा उठाय जानेवाले कष्टोंको देखकर व्यथित हुए बिना नहीं रहेंगे। वे कोई क्रूर शासक नहीं है कि प्रजाके सुख-दुखकी ओर ध्यान ही न दें। ऐसी परिस्थितिमें, ही स्वयं कष्ट उठाकर महाराजाका हृदय द्रवित करने और उन्हें अपने पक्षमें लानेके लिए उपवासका सहारा क्यों नहीं ले सकते?

उ०: सत्याग्रहका मतलब ही परिपूर्ण प्रेम और अहिंसा है। उपवासको एक अस्त्रके तौरपर अपने ऐसे ही स्नेही, मित्र, अनुयायी या सहकर्मीपर प्रयुक्त किया जा सकता है जो आपको कष्ट उठाते हुए देखकर आपके प्रति अपने प्रेमके कारण अपनी गलती महसूस करता है और उसे ठीक कर लेता है। वह अपने अन्दर जिस बुराईको देखता और समझता है और उसे बुराई मानता है, उससे अपने आपको मुक्त कर लेता है। आप उसे बुराईके मार्गसे विमुख करके सीधे सच्चे मार्गकी ओर उन्मुख करनेकी कोशिश करते है। शराबी पिताका व्यसन छुड़ाने के लिए उसका पुत्र उपवास कर सकता है। पिता जानता है कि वह एक दुर्व्यसन है; किन्तु पुत्रको कष्ट उठाते देखकर उसकी

१. शिष्ट मण्डलके दो सदस्य थे; के० माधवन नायर और कुरूर नीलकण्ठन् नम्बूद्रीपाद।