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खादीका विक्रय

“खादी समाचार विभाग” ने दूसरे वर्षका छठा अंक प्रकाशित कर दिया है। इसमें कुछ जानने योग्य बातें हैं। इसको पढ़नेसे पता चलता है कि उत्कल-बम्बई खादी समिति, केरल और मराठी मध्यप्रान्तमें “”गांधी मास”[१] में कमसे-कम २,६०,७८९ रुपयेकी खादी बेची गई। इसमें लोगोंने निजी रूपसे जो खादी खरीदी उनके आँकड़े शामिल नहीं हैं। इसलिए कुल मिलाकर जितनी बिक्री हुई है उसके आँकड़े उक्त आँकड़ोंसे ज्यादा होने चाहिए। इसके अतिरिक्त हमें उक्त आंकड़े प्रकाशित करनेके समयतक कुछ अन्य प्रान्तोंके आँकड़े नहीं मिले थे। इसका तात्पर्य यह है कि समस्त हिन्दुस्तानमें खादीकी बहुत बिक्री हुई होगी। तथापि जहाँ हमारा उद्देश्य प्रतिवर्ष कमसे-कम साठ करोड़ रुपयेकी खादी पैदा करना है वहाँ केवल चार अथवा पांच लाखकी खादीका उत्पादन क्या अर्थ रखता है?

रुईका निर्यात

इसी पत्रिकामें यह समाचार छपा है कि रुईकी २९,८१,३६१ गाँठे सन् १९२१-२२ में और ३३,६२,६०१ गाँठे सन् १९२२-२३ में विदेशोंको निर्यात की गई थीं। इतनी गाँठोंके मूल्यका अधिकांश भाग तो हिन्दुस्तानके किसानोंको मिला, लेकिन उनके पास समय और आवश्यक कला होनेके बावजूद रुईसे कपड़ा बनाये जानेकी स्थिति तक जितनी भी क्रियाएँ हैं, उनकी मजदूरी नहीं मिली, इतना ही नहीं बल्कि उस मजदूरीके बराबरको रकम देशके बाहर चली गई। तात्पर्य यह है कि यदि उन्हें एक सेर रुईका एक रुपया मिला तो उन्होंने उतनी ही रुईको कपड़े के रूपमें फिर खरीदते समय कदाचित् रुपये में से चौदह आने विदेशोंको वापस दे दिये। ऐसा उलटा व्यापार केवल हिन्दुस्तानके लोग ही करते हैं।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, २५-५-१९२४
 
  1. गांधीजीके जन्म-दिवसके उपलक्ष्यमें आयोजित।