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हिन्दू-मुस्लिम तनाव : कारण और उपचार

लेख बहुत ही गन्दे होते हैं। ऐसे कितने ही अंशोंको पढ़ जानेकी व्यथा मैंने सहन की है। इन पत्रोंका संचालन एक तरफ आर्य समाजी या हिन्दू लोग करते हैं और दूसरी तरफ मुसलमान। दोनोंने एक-दूसरेको गालियाँ देने और एक-दूसरे के मजबकी बुराई करने की मानो होड़ बद ली है। सुना है, इन अखबारोंके खरीदारों की तादाद भी खासी बड़ी है। अच्छे-अच्छे वाचनालयोंमें भी ये अखबार जाते है।

मैंने यह भी सुना है कि गाली-गलौज और निन्दा-आलोचनाके इस अभियानको सरकारी गुरगोंकी शह है। इस बातपर एकाएक विश्वास नहीं होता, किन्तु यदि थोड़ी देरके लिए यह मान लें कि बात सही है तो भी पंजाबकी जनताको चाहिए कि वह इस शर्मनाक परिस्थितिसे निपट ले।

मैं समझता हूँ कि मैं इन दो समुदायोंके बीचके तनावके मूल कारणों और इनको जारी रखनेवाले कारणोंपर विचार कर चुका हूँ। अब उन दो बातोंकी जाँच करें, जिनके कारण संघर्ष होता ही रहता है।

गो-हत्या

पहला है गो-वध। यद्यपि गो-रक्षाको मैं एक ऐसा तत्त्व मानता हूँ जो हिन्दू धर्मके केन्द्रमें स्थित है और यह इसलिए कि गो-रक्षाको अमीर-गरीब छोटे-बड़े सभी अपना धर्म मानते हैं; फिर भी इस मामलेमें मुसलमानोंके प्रति हमारा द्वेषभाव मेरी समझमें कभी नहीं आया। अंग्रेजोंके लिए रोज कितनी ही गायें कटती हैं, पर हम उसपर कुछ नहीं कहते। लेकिन जब गायको कोई मुसलमान करल करता है तब हम आग-बबूला हो उठते हैं। गायके नामपर होनेवाले दंगोंमें सदा ही शक्तिका मूर्खतापूर्ण अपव्यय हुआ है। इनसे एक भी गायकी रक्षा नहीं हुई है उलटे मुसलमान ज्यादा हठीले बनते चले गये और फलत: गायें ज्यादा कटने लगी हैं। मुझे बखूबी मालूम है कि १९२१ में मुसलमानोंके द्वारा राजी-खुशी और उदारतासे कोशिश करने के परिणामस्वरूप जितनी गायोंकी रक्षा हुई उतनी गायोंकी रक्षा तो शायद हिन्दू लोग पिछले बीस वर्षों के प्रयत्नोंसे भी नहीं कर पाये हैं। गो-रक्षाकी शुरूआत तो हमसे ही होनी चाहिए। भारतमें मवेशियोंकी जैसी दुर्गति है वैसी शायद दुनियाके किसी हिस्सेमें नहीं है। हिन्दू गाड़ीवानोंको अपने जीर्ण-शीर्ण थके-माँदे बैलोंको बेरहमीसे आर चुभोते हुए देखकर कई बार मेरी आँखें भर आईं। हमारे ज्यादातर मवेशियोंको भरपेट खानेको नहीं दिया जाता है। यह हमारे लिए लज्जास्पद है। गायोंको गरदनपर कसाईकी छुरी इसलिए चल पाती है कि हिन्दू खुद उन्हें बेच डालते हैं। ऐसी हालतमें एकमात्र कारगर और सम्माननीय उपाय यही है कि हम मुसलमानोंसे मैत्रीभाव बनायें और गायकी रक्षाकी जिम्मेवारी उनकी शराफतपर छोड़ दें। गो-रक्षा समितियोंको अपना ध्यान पशुओंको अच्छी तरह खिलाने-पिलाने, उनके साथ होने वाले क्रूरतापूर्ण व्यवहारको बन्द कराने, तेजीसे होनेवाली चरागाहोंकी कमीको रोकने, मवेशियोंकी नस्ल सुधारने, गरीब ग्वालोंसे गायें खरीद लेने और पिंजरापोलोंको आदर्श स्वावलम्बी दुग्ध-शालाएँ बनानेकी ओर लगाना चाहिए। यदि हिन्दू ऊपर बताई गई बातोंमें से एकमें भी चूके तो वे ईश्वर और मनुष्यके सामने अपराधी ठहरेंगे। मुसलमानोंके